भारत के राष्ट्रपति || Indian Presidents

संविधान के भाग V के अनुच्छेद 52 से 78 में संध की कार्यपालिका का वर्णन है। संध की कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल तथा महान्यायवादी शामिल होते है।
राष्ट्रपति, भारत का राज्य प्रमुख होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक है और राष्ट्र की एकता, अखंडता एवं सुदृढ़ता का प्रतीक है।

राष्ट्रपति का निर्वाचन

भारतीय राष्ट्रपति का निर्वाचन एक विशेष निर्वाचन मंडल (Electoral College) के माध्यम से होता है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया

1. निर्वाचन मंडल (Electoral College):

राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल के द्वारा होता है, जिसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं:

  • संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य।
  • सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
  • केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पुदुचेरी की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।

2. मूल्यांकन (Value) और मतदान (Voting):

  • मतदाता मूल्यांकन (Value of Votes):
    • प्रत्येक सांसद और विधायक के वोट का मूल्य अलग-अलग होता है। विधायकों के वोट का मूल्य राज्य की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
    • सांसदों के वोट का मूल्य कुल विधायकों के कुल मूल्य को संसद के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या से विभाजित करके निर्धारित किया जाता है।
  • मतदान प्रक्रिया:
    • चुनाव में ‘प्राथमिकता मतदान प्रणाली’ (Preferential Voting System) का उपयोग किया जाता है।
    • प्रत्येक मतदाता अपनी पसंद के आधार पर उम्मीदवारों की प्राथमिकता तय करता है।
    • यदि किसी उम्मीदवार को पहले प्राथमिकता के मतों की गिनती में ही बहुमत मिल जाता है, तो उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
    • यदि पहले प्राथमिकता के मतों में कोई बहुमत प्राप्त नहीं होता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है और उसके वोट दूसरी प्राथमिकता के अनुसार अन्य उम्मीदवारों में बांटे जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं हो जाता।

3. निर्वाचन आयोग की भूमिका:

  • निर्वाचन प्रक्रिया का आयोजन और नियंत्रण भारत का निर्वाचन आयोग करता है।
  • निर्वाचन आयोग सुनिश्चित करता है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से हो।

4. चुनाव के परिणाम:

  • मतगणना पूरी होने के बाद, निर्वाचन आयोग चुनाव परिणामों की घोषणा करता है।
  • जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा मतों के साथ जीतता है, उसे राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित घोषित किया जाता है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
  • पुनः निर्वाचित होने की कोई सीमा नहीं है; राष्ट्रपति कितनी भी बार निर्वाचित हो सकता है।
  • यदि राष्ट्रपति के पद पर किसी कारणवश रिक्ति होती है, तो नए राष्ट्रपति के चुनाव तक उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं।

अर्हताएं, एवं शर्तें

राष्ट्रपति पद के लिए अर्हताएँ

  1. भारतीय नागरिकता:
    • उम्मीदवार भारतीय नागरिक होना चाहिए।
  2. आयु सीमा:
    • उम्मीदवार की आयु न्यूनतम 35 वर्ष होनी चाहिए।
  3. लोकसभा का सदस्य बनने की अर्हता:
    • उम्मीदवार को लोकसभा का सदस्य बनने की अर्हता प्राप्त होनी चाहिए। इसका अर्थ है कि उसे किसी भी आपराधिक दोषसिद्धि, दिवालियापन, मानसिक अस्वस्थता आदि से अयोग्य नहीं होना चाहिए।
  4. किसी लाभ के पद पर न होना:
    • उम्मीदवार किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए। इसका मतलब है कि उम्मीदवार को किसी भी सरकारी नौकरी या सरकारी संस्थान में पदस्थापित नहीं होना चाहिए, चाहे वह केंद्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय सरकार हो। हालांकि, यह प्रतिबंध राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्रियों पर लागू नहीं होता।

राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें

  1. नामांकन प्रक्रिया:
    • राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को अपना नामांकन पत्र जमा करना होता है। इस नामांकन पत्र में उम्मीदवार के प्रस्तावक और समर्थक (प्रत्येक के कम से कम 50) के हस्ताक्षर होने चाहिए।
    • नामांकन पत्र के साथ 15,000 रुपये की जमानत राशि जमा करनी होती है, जो चुनाव में उम्मीदवार के हारने पर जब्त की जा सकती है।
  2. निर्वाचन प्रक्रिया:
    • चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मतदान गोपनीय होता है।
    • उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए सभी मतों का बहुमत प्राप्त करना होता है।
  3. कार्यकाल:
    • राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। कार्यकाल की समाप्ति के बाद, पुनः चुनाव लड़ने का अधिकार है।
    • राष्ट्रपति पद की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है।
  4. पद रिक्ति की स्थिति:
    • यदि राष्ट्रपति पद रिक्त हो जाता है (मृत्यु, त्यागपत्र, या किसी अन्य कारण से), तो नए राष्ट्रपति के चुनाव तक उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं।
  5. पुनः निर्वाचन:
    • राष्ट्रपति का पुनः निर्वाचन संभव है, और इसके लिए कोई सीमा नहीं है कि कितनी बार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति चुना जा सकता है।

इन अर्हताओं और शर्तों को संविधान में इसलिए शामिल किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राष्ट्रपति का पद एक योग्य और प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा संभाला जाए, जो देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा बनाए रख सके।

पदावधि, महाभियोग व पदरिक्तता

भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के पदावधि, महाभियोग और पदरिक्तता के बारे में विस्तृत प्रावधान हैं। ये निम्नलिखित हैं:

राष्ट्रपति की पदावधि

  1. कार्यकाल:
    • राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है। यह कार्यकाल उस दिन से प्रारंभ होता है जिस दिन राष्ट्रपति पद की शपथ लेता है।
    • कार्यकाल की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति फिर से चुनाव लड़ सकता है और पुनः निर्वाचित हो सकता है।
  2. पुनर्निर्वाचन:
    • राष्ट्रपति को कितनी भी बार पुनः निर्वाचित किया जा सकता है। इसके लिए कोई सीमा नहीं है।

राष्ट्रपति का महाभियोग

  1. महाभियोग की प्रक्रिया:
    • राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 61 के तहत होती है।
    • महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए सदन के कुल सदस्यों के कम से कम एक चौथाई सदस्यों का समर्थन होना चाहिए।
    • प्रस्ताव लाए जाने के 14 दिन बाद उस पर चर्चा और मतदान होता है।
  2. संपूर्ण जाँच:
    • प्रस्ताव पास होने के बाद, दूसरे सदन को महाभियोग की सूचना दी जाती है और वह सदन राष्ट्रपति के खिलाफ आरोपों की जांच करता है।
    • दूसरे सदन में भी महाभियोग प्रस्ताव को पास करने के लिए कम से कम दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
  3. राष्ट्रपति का पदमुक्त होना:
    • यदि दोनों सदनों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पास कर दिया जाता है, तो राष्ट्रपति पद से हट जाता है और उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है।

राष्ट्रपति का पदरिक्तता

  1. पद रिक्त होने के कारण:
    • मृत्यु: राष्ट्रपति की मृत्यु होने पर पद रिक्त हो जाता है।
    • त्यागपत्र: राष्ट्रपति स्वयं त्यागपत्र दे सकता है। त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को संबोधित किया जाता है।
    • महाभियोग: महाभियोग प्रक्रिया के सफल होने पर राष्ट्रपति पद रिक्त हो जाता है।
  2. कार्यवाहक राष्ट्रपति:
    • पद रिक्त होने पर, उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है। यदि उपराष्ट्रपति भी अनुपलब्ध हो, तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, या उनकी अनुपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश, कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं।
  3. नए राष्ट्रपति का चुनाव:
    • राष्ट्रपति का पद रिक्त होने के छह महीने के भीतर नए राष्ट्रपति का चुनाव किया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • कार्यकाल के समाप्ति के बाद भी:
    • यदि नए राष्ट्रपति का चुनाव और शपथ ग्रहण नहीं हुआ है, तो वर्तमान राष्ट्रपति कार्यकाल समाप्ति के बाद भी अपने उत्तराधिकारी के शपथ ग्रहण तक पद पर बना रहता है।

राष्ट्रपति की शक्तियां व कर्तव्य

भारतीय राष्ट्रपति के पास अनेक शक्तियाँ और कर्तव्य हैं, जो संविधान द्वारा निर्धारित किए गए हैं। ये शक्तियाँ और कर्तव्य भारत के कार्यकारी, विधायी, न्यायिक और आपातकालीन कार्यों से संबंधित हैं।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ

1. कार्यकारी शक्तियाँ:

  • प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति: राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
  • राज्यपालों की नियुक्ति: राष्ट्रपति राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति करता है।
  • संविधानिक पदों पर नियुक्तियाँ: राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, निर्वाचन आयुक्त, और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ करता है।
  • सशस्त्र बलों का सुप्रीम कमांडर: राष्ट्रपति सशस्त्र बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है।

2. विधायी शक्तियाँ:

  • संसद का सत्र आह्वान और स्थगन: राष्ट्रपति संसद के सत्रों का आह्वान और स्थगन करता है।
  • संसद के संयुक्त सत्र: किसी विधेयक पर गतिरोध की स्थिति में राष्ट्रपति संसद का संयुक्त सत्र बुला सकता है।
  • विधेयकों पर स्वीकृति: संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कानून बनते हैं। राष्ट्रपति विधेयकों को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है, सिवाय धन विधेयकों के।
  • अध्यादेश जारी करना: जब संसद सत्र में नहीं होती, राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है, जो कानून की तरह प्रभावी होता है।

3. न्यायिक शक्तियाँ:

  • क्षमा, दया और राहत: राष्ट्रपति को किसी व्यक्ति को मृत्युदंड सहित किसी भी दंड में क्षमा, दया, स्थगन, या परिवर्तन करने का अधिकार है।

4. आपातकालीन शक्तियाँ:

  • राष्ट्रीय आपातकाल: राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल (आर्टिकल 352) की घोषणा कर सकता है, जब देश की सुरक्षा पर आंतरिक या बाह्य खतरा होता है।
  • राज्य आपातकाल: किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राष्ट्रपति राष्ट्रपति शासन (आर्टिकल 356) लागू कर सकता है।
  • वित्तीय आपातकाल: वित्तीय स्थिरता के खतरे की स्थिति में राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल (आर्टिकल 360) की घोषणा कर सकता है।

राष्ट्रपति के कर्तव्य

  1. संविधान की रक्षा और संरक्षण: राष्ट्रपति का प्राथमिक कर्तव्य संविधान की रक्षा, संरक्षण और पालन करना है।
  2. कानून और शासन का संरक्षण: राष्ट्रपति को यह सुनिश्चित करना होता है कि देश में कानून और शासन का पालन हो रहा है।
  3. संसद और मंत्रिपरिषद के साथ सहयोग: राष्ट्रपति संसद और मंत्रिपरिषद के साथ मिलकर देश के शासन को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग करता है।
  4. राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संवर्धन: राष्ट्रपति को देश की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए कार्य करना होता है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • राष्ट्रपति अपने कार्यों में निष्पक्ष होता है और उसे किसी राजनीतिक पक्षपात से दूर रहना होता है।
  • राष्ट्रपति को सभी कार्यकारी आदेश मंत्रिपरिषद की सलाह पर करने होते हैं

राष्ट्रपति की वीटो शक्ति

भारतीय राष्ट्रपति के पास वीटो शक्तियाँ होती हैं, जिनका उपयोग वह संसद द्वारा पारित विधेयकों के संदर्भ में कर सकता है। इन शक्तियों का विवरण निम्नलिखित है:

वीटो शक्तियाँ

1. पूर्ण वीटो (Absolute Veto):

  • परिभाषा: राष्ट्रपति द्वारा किसी विधेयक को पूरी तरह अस्वीकार करना।
  • उपयोग: पूर्ण वीटो का उपयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जा सकता है:
    • जब विधेयक सरकार के मंत्रिपरिषद के द्वारा राष्ट्रपति के पुनर्विचार के लिए लौटाए जाने के बाद भी स्वीकृति नहीं पाता।
    • जब विधेयक एक निजी सदस्य (संसद के किसी सदस्य जो मंत्री नहीं है) द्वारा प्रस्तुत किया गया हो और संसद द्वारा पारित हो गया हो, लेकिन सरकार इसे स्वीकृति नहीं देना चाहती।

2. असत्यापन वीटो (Suspensive Veto):

  • परिभाषा: राष्ट्रपति द्वारा विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटाना।
  • उपयोग: यदि राष्ट्रपति को विधेयक के कुछ प्रावधानों पर संदेह हो, तो वह विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकता है। हालांकि, यदि संसद विधेयक को बिना किसी संशोधन के दोबारा पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति को उसे अपनी स्वीकृति देनी होती है।
  • अपवाद: धन विधेयक (Money Bill) के मामले में राष्ट्रपति के पास असत्यापन वीटो का अधिकार नहीं है।

3. पॉकेट वीटो (Pocket Veto):

  • परिभाषा: राष्ट्रपति द्वारा विधेयक पर अनिश्चित काल तक कोई कार्रवाई नहीं करना।
  • उपयोग: संविधान में यह निर्धारित नहीं किया गया है कि राष्ट्रपति को विधेयक पर कार्रवाई के लिए कितने समय के भीतर निर्णय लेना होगा। इस प्रकार, राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति या अस्वीकृति देने में अनिश्चित काल तक देरी कर सकता है।
  • महत्वपूर्ण उदाहरण: 1986 में, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इंडियन पोस्ट ऑफिस (अमेंडमेंट) बिल पर पॉकेट वीटो का उपयोग किया था।

वीटो शक्तियों का महत्व

  • संतुलन बनाए रखना: राष्ट्रपति की वीटो शक्तियाँ संसद द्वारा पारित विधेयकों की जांच और संतुलन बनाए रखने का महत्वपूर्ण उपकरण हैं। यह सुनिश्चित करता है कि विधायिका द्वारा पारित कानून संविधान और राष्ट्रीय हित के अनुरूप हो।
  • कार्यपालिका की समीक्षा: वीटो शक्तियाँ राष्ट्रपति को कार्यपालिका की कार्यवाही की समीक्षा करने का अधिकार देती हैं, जिससे विधायिका के कार्यों में संतुलन और समायोजन हो सके।
  • राष्ट्रपति की स्वतंत्रता: पॉकेट वीटो राष्ट्रपति को एक निश्चित स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिससे वह संसद और मंत्रिपरिषद पर अत्यधिक निर्भरता से बच सकता है।

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति

भारतीय राष्ट्रपति के पास विशेष परिस्थितियों में अध्यादेश (Ordinance) जारी करने की शक्ति होती है, जो संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत दी गई है। यह शक्ति तब प्रयोग की जाती है जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता और तत्काल कानून बनाने की आवश्यकता होती है। इस शक्ति का विवरण निम्नलिखित है:

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति

1. संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 123 के तहत, राष्ट्रपति संसद के सत्र न होने की स्थिति में अध्यादेश जारी कर सकता है, यदि वह यह मानता है कि ऐसी परिस्थिति में तत्काल कार्रवाई आवश्यक है।

2. अवश्यकता और शर्तें:

  • तत्काल आवश्यकता: अध्यादेश केवल उसी स्थिति में जारी किया जा सकता है जब राष्ट्रपति को यह लगता है कि तत्काल कार्रवाई आवश्यक है।
  • संसद के सत्र का न होना: अध्यादेश तब जारी किया जा सकता है जब संसद का कोई सत्र नहीं चल रहा हो (लोकसभा और राज्यसभा दोनों का सत्र नहीं होना चाहिए)।

3. अध्यादेश की वैधता:

  • संसद की मंजूरी: अध्यादेश संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाता है और इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना चाहिए।
  • अवधि: अध्यादेश अधिकतम छह सप्ताह तक प्रभावी रहता है जब संसद का सत्र शुरू होता है। यदि इस अवधि के भीतर संसद द्वारा इसे स्वीकृति नहीं दी जाती, तो यह स्वतः निरस्त हो जाता है।
  • पुनः जारी करना: यदि आवश्यकता हो, तो राष्ट्रपति नए अध्यादेश के रूप में इसे पुनः जारी कर सकता है, लेकिन यह संवैधानिक और न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है।

4. सीमाएँ और विनियमन:

  • न्यायिक समीक्षा: अध्यादेश की संवैधानिकता और वैधता न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय अध्यादेश को संविधान के अनुरूप न होने पर निरस्त कर सकते हैं।
  • विधायी समानता: अध्यादेश की शक्ति विधायिका द्वारा बनाए गए कानून के समान होती है, लेकिन इसे संसद की मंजूरी की आवश्यकता होती है।

5. महत्वपूर्ण उदाहरण:

  • बैंक राष्ट्रीयकरण अध्यादेश (1969): प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 14 बड़े बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिए अध्यादेश जारी किया गया था।
  • अयोध्या राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (1993): विवादित भूमि अधिग्रहण के लिए अध्यादेश जारी किया गया था।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति का महत्व

  1. तत्काल कार्रवाई: संसद के सत्र न होने पर भी, सरकार तत्काल और आवश्यक कानून बना सकती है, जिससे प्रशासनिक कार्यों में अवरोध नहीं होता।
  2. शासन का निरंतरता: यह शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि महत्वपूर्ण और आपातकालीन स्थितियों में सरकार कार्य कर सके और आवश्यक कदम उठा सके।
  3. विधायिका और कार्यपालिका का संतुलन: यह शक्ति राष्ट्रपति को कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन बनाए रखने का अधिकार देती है।

अध्यादेश जारी करने की प्रक्रिया

  1. मंत्रिपरिषद की सलाह: राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने से पहले मंत्रिपरिषद की सलाह प्राप्त करता है।
  2. अध्यादेश की घोषणा: राष्ट्रपति अध्यादेश को आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित करता है, जिसके बाद यह प्रभावी हो जाता है।
  3. संसद में प्रस्तुत करना: संसद के अगले सत्र के प्रारंभ होने पर अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाता है।

राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत, राष्ट्रपति के पास क्षमादान (Pardon) और अन्य दंड राहत प्रदान करने की शक्ति होती है। यह शक्ति किसी भी व्यक्ति को दंडित किए जाने के मामले में विभिन्न प्रकार की राहत प्रदान करने की अनुमति देती है। यह शक्तियाँ विशेष रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण होती हैं जहाँ न्यायिक प्रक्रियाओं में कोई त्रुटि हो सकती है, या मानवीय दृष्टिकोण से दया का प्रयोग किया जा सकता है। राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति का विवरण निम्नलिखित है:

राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति

1. संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 72 के तहत, राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई है।

2. शक्तियों के प्रकार:

  • क्षमादान (Pardon): राष्ट्रपति दंड को पूरी तरह से माफ कर सकता है, जिससे दोषी व्यक्ति को पूरी तरह से दोषमुक्त कर दिया जाता है।
  • माफी (Commutation): यह शक्ति राष्ट्रपति को मूल दंड को किसी कमतर दंड में बदलने की अनुमति देती है, जैसे मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल देना।
  • विलंबन (Reprieve): यह शक्ति दंड को अस्थायी रूप से स्थगित करने की अनुमति देती है, जिससे दोषी को कुछ समय के लिए राहत मिल सके।
  • स्थगन (Respite): यह शक्ति राष्ट्रपति को दंड को स्थगित करने की अनुमति देती है, विशेषकर कुछ समय के लिए या विशेष परिस्थितियों में, जैसे गर्भवती महिलाओं या बीमार व्यक्तियों के मामलों में।
  • राहत (Remission): यह शक्ति राष्ट्रपति को दंड की अवधि को कम करने की अनुमति देती है, जैसे 10 वर्ष की सजा को 5 वर्ष में बदल देना।

3. क्षेत्राधिकार:

  • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड: राष्ट्रपति उन मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है जहां सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों द्वारा सजा दी गई है।
  • सैन्य न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड: राष्ट्रपति सैन्य न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड में भी हस्तक्षेप कर सकता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा कानून के तहत दंड: राष्ट्रपति केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कानूनों के तहत दिए गए दंड को भी माफ कर सकता है।

क्षमादान की प्रक्रिया

  1. याचिका प्रस्तुत करना: दोषी व्यक्ति या उसके परिवार द्वारा राष्ट्रपति को क्षमादान के लिए याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।
  2. मंत्रिपरिषद की सलाह: राष्ट्रपति को क्षमादान के मामले में मंत्रिपरिषद की सलाह प्राप्त करनी होती है। मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह राष्ट्रपति को बाध्यकारी होती है।
  3. विवेचना: संबंधित अधिकारी और मंत्रिपरिषद मामले की विवेचना करते हैं और उसके आधार पर राष्ट्रपति को सलाह देते हैं।
  4. निर्णय: राष्ट्रपति सभी तथ्यों और सलाह को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है।

महत्व

  1. मानवीय दृष्टिकोण: क्षमादान की शक्ति राष्ट्रपति को मानवीय दृष्टिकोण से दया का प्रयोग करने की अनुमति देती है।
  2. न्यायिक त्रुटियों का सुधार: यह शक्ति न्यायिक त्रुटियों को सुधारने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हो सकती है।
  3. सुधारात्मक और समायोजन: यह शक्ति सुधारात्मक न्याय प्रणाली का समर्थन करती है, जिससे दंडित व्यक्ति को सुधारने और समाज में पुनः समायोजित करने का मौका मिलता है।

महत्वपूर्ण उदाहरण

  • महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे: गोडसे के मामले में क्षमादान की याचिका को राष्ट्रपति ने अस्वीकार कर दिया था।
  • धनंजय चटर्जी: धनंजय चटर्जी के मामले में भी राष्ट्रपति ने क्षमादान की याचिका अस्वीकार कर दी थी।

राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो न्याय प्रणाली में दया, मानवता और सुधार की अवधारणा को बढ़ावा देती है। यह शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि कानून का पालन करते हुए भी मानवीय मूल्यों का सम्मान बना रहे।

राष्ट्रपति की संवैधनिक स्थिति

भारतीय संविधान में राष्ट्रपति की स्थिति को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। भारतीय राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारी है और भारतीय गणराज्य का प्रमुख है। राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति

1. राष्ट्र प्रमुख:

  • राष्ट्रपति भारत के गणराज्य का प्रमुख होता है। उसे देश का सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारी माना जाता है।
  • राष्ट्रपति भारतीय राज्य की एकता, अखंडता और गरिमा का प्रतीक है।

2. कार्यकारी प्रमुख:

  • संविधान के अनुच्छेद 53 के तहत, संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है और वह इसे संविधान और कानूनों के अनुसार प्रयोग करता है।
  • राष्ट्रपति के कार्यकारी कृत्य आमतौर पर मंत्रिपरिषद की सलाह पर होते हैं।

3. विधायी प्रमुख:

  • राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग है और विधायिका के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • संसद के दोनों सदनों की बैठक बुलाने, स्थगित करने और सत्रावसान करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है।
  • संसद द्वारा पारित विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करनी होती है ताकि वे कानून बन सकें।
  • राष्ट्रपति संसद के संयुक्त सत्र का आह्वान कर सकता है।

4. न्यायिक प्रमुख:

  • राष्ट्रपति को न्यायिक कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है, जैसे क्षमादान, माफी, राहत, स्थगन और विलंबन।
  • राष्ट्रपति न्यायालयों के निर्णयों की समीक्षा कर सकता है और दोषियों को दया प्रदान कर सकता है।

5. सशस्त्र बलों का सर्वोच्च सेनापति:

  • राष्ट्रपति सशस्त्र बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। वह सेना, नौसेना और वायुसेना की नियुक्तियों और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • राष्ट्रपति महत्वपूर्ण सैन्य अधिकारियों की नियुक्तियाँ करता है।

6. कूटनीतिक प्रमुख:

  • राष्ट्रपति देश का कूटनीतिक प्रमुख होता है। वह विदेशी राष्ट्रों के साथ संधियाँ और समझौते करता है।
  • राष्ट्रपति भारत के राजदूतों और उच्चायुक्तों की नियुक्ति करता है और विदेशी देशों से उनके राजदूतों को मान्यता प्रदान करता है।

7. आपातकालीन शक्तियाँ:

  • राष्ट्रपति को राष्ट्रीय, राज्य और वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार है।
  • आपातकालीन स्थितियों में राष्ट्रपति को व्यापक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जो देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका

1. संवैधानिक संरक्षक:

  • राष्ट्रपति का कर्तव्य संविधान की रक्षा और संरक्षण करना है। वह संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करता है और सभी संवैधानिक संस्थाओं के कार्यों को सुनिश्चित करता है।

2. मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य:

  • अनुच्छेद 74 के तहत, राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है। हालांकि, कुछ विशेष स्थितियों में वह मंत्रिपरिषद की सलाह पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है।
  • यदि मंत्रिपरिषद अपनी सलाह को बिना किसी परिवर्तन के पुनः प्रस्तुत करती है, तो राष्ट्रपति को इसे मानना पड़ता है।

3. संतुलन और जांच:

  • राष्ट्रपति की भूमिका विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन और जांच की है। वह सरकार के कार्यों की निगरानी करता है और यह सुनिश्चित करता है कि संविधान का पालन हो

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अनुच्छेद विषयवस्तु
52भारत के राष्ट्रपति
53संध की कार्यपालक शक्ति
54राष्ट्रपति का चुनाव
55राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका
56राष्ट्रपति का कार्यकाल
57पुनः चुनाव के लिए अर्हता
58राष्ट्रपति चुने जाने के लिए योग्यता
59राष्ट्रपति कार्यालय की दशाएं
60राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण
61राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया
62राष्ट्रपति पद की रिक्ति की पूर्ति के लिए चुनाव कराने का समय
65उप-राष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना
71राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित मामले
72राष्ट्रपति की क्षमादान इत्यादि की शक्ति तथा कतिपाि मामलों में दंड का स्थगन माफी अथवा कम कर देना।
74मंत्रिपरिषद का राष्ट्रपति को परामर्श एवं सहयोग प्रदान करना
75मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान जैसे नियुक्ति कार्यकाल, वेतन इत्यादि।
76भारत के महान्यायवादी
77भारत सरकार द्वारा कार्यवाही का संचालन
78राष्ट्रपति को सूचना प्रदान करने से संबंधित प्रधानमंत्री के दायित्व इत्यादि।
85संसद के सत्र, सत्रावासन तथा भंग करना।
111संसद द्वारा पारित विधेयको पर सहमति प्रदान करना।
112संघीय बजट (वार्षिक वितीय विवरण)
123राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति
143राष्ट्रपति की सर्वोंच्च न्यायलय से सलाह लेने की शक्ति।

भारतीय राष्ट्रपतियों के निर्वाचन की सूची : 1952 से 2024 तक:

डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1952-1962)
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1962-1967)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन (अंतरिम, 1967)
डॉ. भारतरत्ना डॉ. वी. वी. गिरी (1967-1969)
श्री वराहगिरी वेंकटागिरी (1969-1974)
डॉ. फ़क़रुद्दीन अली अहमद (1974-1977)
श्री नीलम संजीव रेड्डी (अंतरिम, 1977)
श्री ग्यानेन्द्र बिरला (अंतरिम, 1977)
श्री नीलम संजीव रेड्डी (1977-1982)
श्री गियासुद्दीन अहमद (1982-1987)
श्री रामस्वामी वेंकटरामन (1987-1992)
डॉ. शंकर दयाल शर्मा (1992-1997)
श्री के राजेन्द्रनाथ नारायणन (1997-2002)
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (2002-2007)
श्री प्रतिभा देवी सिंह पाटिल (2007-2012)
श्री प्रणब मुखर्जी (2012-2017)
श्री रामनाथ कोविंद (2017-2022)
द्रौपदी मुर्मू (2022- Til now) 1

  1. ↩︎

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