अकबर, एक मुगल सम्राट था, जो 16वीं सदी में भारत के मुगल साम्राज्य का शासक था। उसका जन्म 15 अक्टूबर 1542 को हुआ था और वह मुगल सम्राट हुमायूं का पुत्र था। अकबर ने बहुत ही कम उम्र में, 13 साल की उम्र में, 1556 में सम्राट की भूमिका संभाली जब उसके पिता हुमायूं की मृत्यु हो गई।
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अकबर
जन्म – 15 अक्टूबर, 1542 ई. मे
जन्म स्थान – अमरकोट (सिन्ध) में
पूरा नाम – जलालूद्दीन मोहम्मद अकबर
पिता – हुमायूं
माता – हमीदा बानो बेगम
राज्याभिषेक – 14 फरवरी, 1556 ई. कालानौर गुरुदासपुर
संतान – तीन पुत्र व तीन पुत्रिया
तीन पुत्र – सलीम, मुरादव दानियाल इसमें से सलीम का जन्म अम्बर का राजा बिहारी मल की पुत्री जोधाबाई के गर्भ से हुआ था। मुराद व दानियाल का जन्म अकबर की दो भिन्न उपपत्नियों से हुआ था।
तीन पुत्री – खानम सुल्तान, शुक्रुन निशा बेगम व आराम बानों बेगम।
उत्तराधिकारी – सलीम (जहांगीर), जबकि दो पुत्रों में मुराद की मृत्यु 1599 ई में तथा दानियाल की मृत्यु 1604 ई मं अतिशय मदिरापान के कारण हुई।
प्रारंभिक जीवन-
- अकबर का प्रारंभिक जीवन यानी अकबर का शुरुआती जीवन या उनके प्रारंभिक वर्षों की बात करें, तो अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट (वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में स्थित) में हुआ था। उनके पिता का नाम हुमायूं था जो मुगल साम्राज्य के दूसरे शासक थे, और उनकी माता का नाम हमीदा बानो बेगम था।
- अकबर ने अपना अधिकांश प्रारंभिक जीवन संघर्ष के बीच बिताया क्योंकि उनके पिता हुमायूं को मुगल साम्राज्य से बाहर निकाल दिया गया था और वह निर्वासन में थे। अकबर ने बहुत छोटी उम्र से ही सत्ता के संघर्ष और युद्ध का अनुभव किया।
- 14 साल की उम्र में, अकबर ने मुगल साम्राज्य की गद्दी संभाली। इसके बाद, उन्हें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी सैन्य क्षमता और सूझबूझ के बल पर उन्होंने अपने साम्राज्य को मजबूत किया और मुगल साम्राज्य के सबसे महान शासकों में से एक बन गए।
- अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान धर्म, कला, संस्कृति, और विज्ञान के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार किए। उनकी जीवन कहानी संघर्ष और सफलता की एक अद्भुत कथा है जो हमें उनके प्रारंभिक जीवन और उनके द्वारा स्थापित की गई महान विरासत के बारे में बताती है।
प्रारम्भिक शिक्षा
जब अकबर पांच वर्ष का था तो हुमायूँ ने उसकी शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया। उसके लिएदो शिक्षक पीर मोहम्मद तथा बैरम खां को नियुक्त किया गया। किन्तु अकबर को शिक्षा प्राप्त करने में कोई रूचि नहीं थी। उसी अभिरूचि शिकार, घुडसवारी, तीरंदाजी व तलवार चलाने आदि में थी। यद्यपि उसकी बुद्धि अत्यन्त ही तीव्र थी। उसने स्वेच्छा से प्रसिद्ध सूफी कवि हाफिज एवं जलालूद्दीन रूमी की रहस्यवादी कविताओं को कंठस्थ कर लिया था। जब अकबर ने पढ़ाई के तरफ कोई ध्यान नहीं दिया तो हुमायूँ ने आरम्भ से ही उसे राज-काज मे ंलगाना आरम्भ किया। जब वह मात्र नौ वर्ष का था तो 1551 ई में गजनी के राज्यपाल के रूप में पहली बाद से औपचारिक दायित्व साँप गया।
बैरम खां की संरक्षता-
1556 से 1560 ई. तक का काल बैरम खां की संरक्षता का काल था। बैरम खां अकबर के शुरुआती जीवन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे और उन्होंने अकबर की प्रारंभिक शासनकाल में संरक्षता की। बैरम खां मुगल साम्राज्य के दूसरे शासक हुमायूं के अधीन एक प्रमुख सेनापति और सलाहकार थे। जब हुमायूं का निधन हो गया, उस समय अकबर केवल 13 साल के थे। ऐसे में बैरम खां ने अकबर के संरक्षक के रूप में काम किया और उनके शासक बनने के बाद शुरुआती वर्षों में उनकी मदद की।
बैरम खां ने अकबर को शासन के लिए प्रशिक्षित किया और उसके शासनकाल के शुरुआती वर्षों में मुगल साम्राज्य को विस्तार और स्थिरता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अकबर को मुगल साम्राज्य को पुनः संगठित करने और विरोधियों से निपटने में मदद की। उन्होंने 1556 में पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) के खिलाफ निर्णायक जीत हासिल करने में भी मदद की, जिससे अकबर का शासन मजबूत हुआ।
हालाँकि, कुछ समय बाद, अकबर और बैरम खां के बीच मतभेद हो गए, जिसके परिणामस्वरूप बैरम खां को पद से हटना पड़ा। इसके बाद, बैरम खां ने हज यात्रा करने के लिए मक्का जाने का निर्णय लिया, लेकिन रास्ते में उनकी हत्या हो गई।
बैरम खां की संरक्षता के बिना अकबर को शासनकाल की शुरुआत में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता, लेकिन उनके अनुभव और मार्गदर्शन ने अकबर को एक शक्तिशाली शासक बनने में मदद की।
अकबर द्वारा लड़े गए युद्ध-
अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े, जिससे मुगल साम्राज्य का विस्तार और स्थिरता प्राप्त हुई। इन युद्धों ने उसे भारत के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक के रूप में स्थापित किया। यहां कुछ प्रमुख युद्धों का उल्लेख है, जो अकबर द्वारा लड़े गए थे:
- पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556): यह लड़ाई अकबर के शासनकाल की शुरुआत में हुई। बैरम खां की मदद से अकबर ने हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को पराजित किया। इस जीत से मुगल साम्राज्य को पुनः संगठित करने में मदद मिली।
- मेवाड़ के खिलाफ युद्ध (1567-1568): अकबर ने राजा उदय सिंह द्वितीय के खिलाफ चित्तौड़ के किले पर हमला किया। युद्ध के बाद चित्तौड़ पर मुगलों का कब्जा हो गया।
- गुजरात का युद्ध (1572-1573): गुजरात के शासक ने मुगल अधीनता को चुनौती दी, इसलिए अकबर ने गुजरात के खिलाफ एक सैन्य अभियान चलाया और उसे सफलतापूर्वक अपने साम्राज्य में मिला लिया।
- बंगाल का युद्ध (1574-1576): अकबर ने बंगाल के शासक दाउद खान कर्रानी के खिलाफ अभियान चलाया और बंगाल को अपने साम्राज्य में शामिल किया।
- काबुल का युद्ध (1581): अकबर ने अपने चचेरे भाई मिर्जा हाकिम के खिलाफ काबुल पर अधिकार हासिल करने के लिए एक अभियान चलाया।
- दक्कन का अभियान: अकबर ने दक्षिण भारत में दक्कन क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए कई अभियान चलाए। हालांकि, उसके अधिकांश सैन्य अभियान उसके बेटे जहांगीर के शासनकाल में पूरे हुए।
अकबर ने अपने सैन्य अभियानों और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से मुगल साम्राज्य का विस्तार किया और उसे एक सशक्त और स्थिर साम्राज्य में बदल दिया।
अकबर के समय में, पर्दा प्रथा या घूंघट प्रथा-
अकबर के समय में, पर्दा प्रथा या घूंघट प्रथा समाज में एक प्रमुख और सामान्य प्रथा थी, विशेष रूप से उच्च वर्गों और राजपूतों के बीच। इस प्रथा के अनुसार, महिलाओं को घर से बाहर निकलते समय अपने चेहरे और शरीर को कपड़ों से ढंकना पड़ता था ताकि पुरुषों से उनकी दृष्टि छुपी रहे। यह प्रथा महिलाओं की गोपनीयता, सम्मान और सुरक्षा के नाम पर शुरू हुई थी, लेकिन बाद में यह उनके अधिकारों और स्वतंत्रता को सीमित करने का कारण बन गई।
अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार करने की कोशिश की थी। हालांकि, पर्दा प्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने कोई स्पष्ट नीतियाँ नहीं बनाई, लेकिन उन्होंने अपने दरबार में महिलाओं के लिए सम्मानजनक स्थिति सुनिश्चित की। उनके दरबार में कई महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे कि उनकी पत्नी रुकीया सुल्ताना बेगम और फतेहपुर सीकरी में बनी “पंचमहल” जैसी संरचनाओं में महिलाओं के लिए अलग स्थान भी बनाए गए।
हालांकि अकबर ने पर्दा प्रथा के खिलाफ सीधे कोई कदम नहीं उठाया, लेकिन उन्होंने अपनी समावेशी नीतियों और धर्मों के प्रति सहिष्णुता से समाज में प्रगतिशील बदलाव की राह बनाई। इससे समाज में महिलाओं के अधिकारों के प्रति धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ी।
साम्राज्य विस्तार
अकबर का शासनकाल (1556-1605) मुगल साम्राज्य के विस्तार और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व, सैन्य अभियानों, और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से साम्राज्य को एक व्यापक और स्थिर रूप दिया। अकबर के साम्राज्य विस्तार के प्रमुख पहलुओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- उत्तर भारत का एकीकरण: अकबर ने अपने शासनकाल के शुरुआती वर्षों में पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556) में जीत हासिल करके दिल्ली और आगरा को नियंत्रित किया। इसके बाद उन्होंने उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों को मुगल साम्राज्य के अधीन किया।
- राजस्थान और राजपूत राज्यों के साथ संबंध: अकबर ने राजस्थान के कई राजपूत राज्यों के साथ संधियाँ कीं और कुछ युद्ध भी लड़े। उन्होंने राजपूत नेताओं को अपने दरबार में महत्वपूर्ण पद दिए और उनके साथ विवाह संबंध भी स्थापित किए, जिससे राजपूतों के साथ अच्छे संबंध बने।
- गुजरात का अधिग्रहण: अकबर ने गुजरात के शासक के खिलाफ अभियान चलाया और उसे अपने साम्राज्य में शामिल किया। गुजरात का अधिग्रहण महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों और समृद्ध क्षेत्रों पर नियंत्रण प्रदान करता था।
- बंगाल और बिहार का अधिग्रहण: अकबर ने बंगाल और बिहार के क्षेत्रों में मुगल शासन स्थापित किया। दाउद खान कर्रानी के खिलाफ अभियान चलाकर उन्होंने इन क्षेत्रों को मुगल साम्राज्य में मिलाया।
- दक्कन का विस्तार: अकबर ने दक्षिण भारत के दक्कन क्षेत्र में भी मुगल प्रभाव बढ़ाया। हालांकि, यह क्षेत्र पूरी तरह से उनके शासनकाल में नहीं आया, लेकिन उनके बेटे जहांगीर के समय में यह मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
- काबुल और अफगानिस्तान का नियंत्रण: अकबर ने काबुल और अफगानिस्तान के क्षेत्रों पर भी नियंत्रण किया और अपने चचेरे भाई मिर्जा हाकिम के खिलाफ अभियान चलाया।
गुजरात विजय–
1572-73 में अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त की। गुजरात उस समय एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था और मुगल साम्राज्य के लिए आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। इसके अलावा, गुजरात में राजनीतिक स्थिरता नहीं थी और विभिन्न छोटे राजवंशों के बीच संघर्ष चल रहा था।
अकबर ने इस स्थिति का लाभ उठाकर गुजरात पर आक्रमण किया। उनकी सेना ने राजा मुर्तजा नायकों को पराजित किया, जो गुजरात के सुल्तान के रूप में शासन कर रहे थे। अकबर की विजय के बाद, गुजरात को मुगल साम्राज्य में शामिल किया गया और यहां मुगल शासन स्थापित किया गया।
अकबर की गुजरात विजय ने मुगल साम्राज्य की ताकत को और बढ़ाया और भारत के पश्चिमी हिस्से में मुगल नियंत्रण को मजबूत किया।
धार्मिक नीति–
अकबर की धार्मिक नीति को “सुलह-ए-कुल” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “सर्वधर्म समभाव” या “सभी के साथ मेल-जोल”। यह नीति विविधता और सहिष्णुता पर आधारित थी। अकबर ने अपनी नीति के तहत विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता दिखायी और सभी धर्मों को सम्मानित किया। उसकी धार्मिक नीति के कुछ मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं:
- ईबादत खाना: अकबर ने आगरा में ईबादत खाना नामक एक विशेष सभा स्थल का निर्माण किया जहाँ विभिन्न धर्मों के विद्वान एकत्र होकर धार्मिक चर्चा करते थे। इस पहल से विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता और समझ विकसित हुई।
- नए धर्म की खोज: अकबर ने “दीन-ए-इलाही” नामक एक नए धर्म की स्थापना की, जो विभिन्न धर्मों के मूल तत्वों का मिश्रण था। हालांकि यह धर्म व्यापक रूप से लोकप्रिय नहीं हुआ, लेकिन यह अकबर की धार्मिक सहिष्णुता और विविधता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- जजिया कर का उन्मूलन: अकबर ने गैर-मुस्लिमों पर लगाए जाने वाले जजिया कर को समाप्त कर दिया, जिससे गैर-मुस्लिमों के प्रति सहिष्णुता दिखाई।
- धार्मिक स्वतंत्रता: अकबर ने विभिन्न धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्मों का पालन करने की स्वतंत्रता दी। उसने सभी धर्मों के प्रति सम्मान दिखाया और उनके विद्वानों को अपने दरबार में सम्मानित किया।
अकबर की धार्मिक नीति ने उसके शासनकाल में साम्राज्य में सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा दिया और उसे एक सहिष्णु और प्रगतिशील शासक के रूप में प्रतिष्ठित किया।
सामाजिक सुधार-
अकबर के शासनकाल में किए गए सामाजिक सुधारों ने उनके समय में मुगल साम्राज्य में सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तनों को बढ़ावा दिया। अकबर ने अपने शासनकाल में निम्नलिखित सामाजिक सुधारों को अपनाया:
- धार्मिक सहिष्णुता: अकबर ने विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता दिखाई और सभी धर्मों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखा। उसने “सुलह-ए-कुल” (सर्वधर्म समभाव) की नीति अपनाई, जिससे सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार मिले।
- जाति प्रथा के खिलाफ: अकबर ने जाति-आधारित भेदभाव को कम करने का प्रयास किया। उसने अपने दरबार में सभी जातियों के लोगों को समान अवसर प्रदान किया और उनकी योग्यता के आधार पर पद देने का प्रयास किया।
- महिलाओं की स्थिति में सुधार: अकबर ने समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए। उसने सती प्रथा को हतोत्साहित किया और विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
- शिक्षा: अकबर ने शिक्षा के महत्व को समझा और विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने दरबार में आमंत्रित किया। उसने विद्वानों को प्रोत्साहित किया और ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान के लिए मंच प्रदान किया।
- अधिकारों का संरक्षण: अकबर ने अपने शासनकाल में लोगों के अधिकारों का संरक्षण किया और न्याय का उचित और निष्पक्ष पालन किया।
- सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता: अकबर ने अपने साम्राज्य में विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं के लोगों को साथ लाने की कोशिश की। इससे समाज में सामंजस्य और सहिष्णुता को बढ़ावा मिला।
इन सामाजिक सुधारों के माध्यम से अकबर ने अपने शासनकाल में एक समृद्ध, समावेशी और सहिष्णु समाज का निर्माण किया, जिससे मुगल साम्राज्य का विस्तार और मजबूती प्राप्त हुई।
अकबर के अन्तिम दिन व मृत्यु-
मुगल सम्राट अकबर की मृत्यु 12 अक्टूबर 1605 को हुई थी। उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र लगभग 63 वर्ष थी। अकबर की मृत्यु आगरा में हुई, और उन्हें आगरा के पास स्थित सिकंदरा में दफनाया गया। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे जहांगीर ने मुगल साम्राज्य की बागडोर संभाली। अकबर का शासनकाल मुगल साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण और गौरवपूर्ण युग था, जिसमें उन्होंने विभिन्न सुधारों और धार्मिक सहिष्णुता की नीति को अपनाया