भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 के तहत नियुक्त किए जाते हैं। वे भारत सरकार के मुख्य विधि अधिकारी होते हैं और सरकार को कानूनी सलाह देते हैं।
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वर्तमान महान्यायवादी:
- आर. वेंकटरमणी वर्तमान में भारत के महान्यायवादी हैं। उन्होंने अक्टूबर 2022 को इस पद को संभाला। वे एक अनुभवी वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और भारतीय विधिक समुदाय में एक प्रतिष्ठित नाम हैं।
महान्यायवादी के कार्य और महत्व:
- कानूनी सलाहकार:
- महान्यायवादी भारत सरकार को विभिन्न कानूनी मुद्दों पर सलाह देते हैं। इसमें संसद में पेश किए जाने वाले विधेयकों, नीतियों और अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों से संबंधित कानूनी मुद्दे शामिल होते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व:
- महान्यायवादी सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे सरकार के मामलों में अदालत के समक्ष तर्क देते हैं, विशेष रूप से संवैधानिक मामलों में।
- सरकारी मामलों की निगरानी:
- वे उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक निकायों में भी सरकार के मामलों की निगरानी करते हैं और आवश्यकतानुसार वहाँ भी सरकार का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।
- सरकार के हितों की रक्षा:
- महान्यायवादी का मुख्य उद्देश्य सरकार के हितों की रक्षा करना होता है। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकार के कानूनी पक्षों का सही और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाए।
- मंत्रिमंडल की बैठकों में उपस्थिति:
- महान्यायवादी को मंत्रिमंडल की बैठकों में शामिल होने और विधिक मुद्दों पर सलाह देने का अधिकार होता है, जब कोई कानूनी प्रश्न उठता है।
- अध्यक्षीय भूमिकाएँ:
- कभी-कभी, महान्यायवादी विभिन्न विधिक समितियों और आयोगों के अध्यक्ष के रूप में भी काम कर सकते हैं, जिनका गठन सरकार द्वारा विशेष मुद्दों पर सलाह और सिफारिशें देने के लिए किया जाता है।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- महान्यायवादी का पद संविधान के तहत एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है। वे सरकार के विधिक मामलों में एक मार्गदर्शक के रूप में काम करते हैं और सरकार की नीतियों और निर्णयों के कानूनी पक्षों को न्यायिक चुनौती के समक्ष सही ढंग से प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका काम भारतीय विधिक प्रणाली के सुचारू संचालन में भी योगदान देता है, जिससे सरकार और न्यायपालिका के बीच संतुलन बना रहता है
- महान्यायवादी सर्वप्रथम भारत सरकार का विधि अधिकारी होता है।
- भारत का महान्यवादी न तो संसद का सदस्य होता है और न ही मंत्रिमंडल का सदस्य होता है। लेकिन वह किसी भी सदन में अथवा उनकी समितियों में बोल सकता है, किन्तु उसे मत देने का अधिकार नहीं है। (अनुच्छेछ-88)
- महान्यायवादी की नियुुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा वह उसके प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है।
- महान्याववादी बनने के लिए वही अर्हताएँ होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायलय के न्यायधीश बनने के लिए होती है।
- महान्यायवादी को भारत के राज्य क्षेत्र के सभी न्यायलयों में सुनवाई का अधिकार है।
- महान्यायवादी को सहायता देने के लिए एक सॉलिसिटर जनरल तथा दो अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी नियुक्त किये जाते है।
राज्य का महाधिवक्ता
- अनुच्छेद – 165 मे राज्य के महाधिवक्ता की अव्यवस्था की गई है वह राज्य का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है।
- महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा होती है। राज्यपाल वैसे व्यक्ति को महाधिव्क्ता नियुक्त करता है, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने की योग्यता हो। वह अपने पद पर राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त बना रहता है।
महाधिवक्ता के कार्य
- राज्य सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गये हो
- विधिक स्वरूप से ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करें जो राज्यपाल द्वारा सौपें गये हो।
- अपने कार्य संबंधी कर्तव्यों के तहत उसे उस राज्य के किसी न्यायालय के समक्ष सुनवाई का अधिकार है। इसके अतिरिक्त उसे विधानमंडल के दोनें सदनों या संबंधित समिति अथवा उस सभा में, जहाँ के लिए वह अधिकृत है, में बिना मताधिकार बोलने व भाग लेने का अधिकार है। महाधिवक्त को वे सभी विशेषाधिकार एवं भते मिलते हैं जो विधान मंडल के किसी सदस्य को मिलते है।