गुरुत्वाकर्षण (Gravity) एक प्राकृतिक बल है जो सभी भौतिक वस्तुओं को एक दूसरे की ओर आकर्षित करता है। यह बल वस्तुओं के द्रव्यमान और उनके बीच की दूरी पर निर्भर करता है। आइज़ैक न्यूटन द्वारा प्रस्तावित गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार, यह बल दो वस्तुओं के द्रव्यमान के गुणनफल के सीधे अनुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
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गुरुत्वाकर्षण की परिभाषा:
गुरुत्वाकर्षण वह बल है जिसके द्वारा पृथ्वी, चंद्रमा, या कोई अन्य खगोलीय पिंड किसी अन्य वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह बल वस्तुओं को धरातल पर बनाए रखता है और हमारे ब्रह्मांड में विभिन्न खगोलीय पिंडों की कक्षाओं को निर्धारित करता है।
गुण और विशेषताएँ:
- सार्वत्रिकता: गुरुत्वाकर्षण बल सार्वत्रिक होता है, यानी यह सभी वस्तुओं के बीच विद्यमान रहता है, चाहे वे कितनी भी दूर क्यों न हों।
- बल का परिमाण: किसी वस्तु के द्रव्यमान और उसकी दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
- दूरी पर निर्भरता: यह बल वस्तुओं के बीच की दूरी बढ़ने पर तेजी से कम होता है।
- नियमितता: यह बल हमेशा आकर्षण की दिशा में कार्य करता है, यानी वस्तुओं को एक दूसरे की ओर खींचता है।
- अंतर्क्रिया: गुरुत्वाकर्षण बल वस्तुओं के बीच अंतर्क्रिया करता है और इन वस्तुओं की गति और दिशा को प्रभावित करता है।
- रेंज: इसका प्रभाव बहुत दूर तक होता है, लेकिन यह दूरी बढ़ने के साथ कमज़ोर हो जाता है।
गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव:
- पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण: यह बल पृथ्वी पर सभी वस्तुओं को नीचे की ओर खींचता है, जिससे वे धरातल पर रहती हैं।
- खगोलीय पिंडों की गति: गुरुत्वाकर्षण बल सूर्य, ग्रह, चंद्रमा, और अन्य खगोलीय पिंडों की गति और कक्षाओं को नियंत्रित करता है।
- समुद्र की लहरें: चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति समुद्र की लहरों और ज्वार-भाटाओं को प्रभावित करती है।
गुरुत्वाकर्षण के नियमों को समझने से हम ब्रह्मांड के विभिन्न पहलुओं, जैसे ग्रहों की गति, कृत्रिम उपग्रहों की कक्षा, और भौतिक विज्ञान के अन्य कई सिद्धांतों को समझ सकते हैं।
गुरुत्वाकर्षण के प्रकार –
गुरुत्वाकर्षण (Gravity) का केवल एक प्रकार होता है, लेकिन इसे समझने के और इसके विभिन्न संदर्भों में उपयोग करने के विभिन्न तरीके हैं। यहाँ कुछ प्रमुख रूप हैं जिनमें गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है:
1. पारंपरिक न्यूटनियन गुरुत्वाकर्षण:
यह आइज़ैक न्यूटन द्वारा प्रस्तावित गुरुत्वाकर्षण का पारंपरिक सिद्धांत है। इसके अनुसार, दो वस्तुओं के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल उनके द्रव्यमान के गुणनफल के सीधे अनुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
2. सापेक्षतावादी गुरुत्वाकर्षण (Einstein’s General Relativity):
अल्बर्ट आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार, गुरुत्वाकर्षण बल वास्तव में द्रव्यमान द्वारा अंतरिक्ष-समय के वक्रण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। यह सिद्धांत अधिक सटीक है और अत्यधिक द्रव्यमान या उच्च गुरुत्वीय क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होता है।
3. क्वांटम गुरुत्वाकर्षण (Quantum Gravity):
यह एक सैद्धांतिक फ्रेमवर्क है जो क्वांटम यांत्रिकी और सापेक्षता के सिद्धांतों को मिलाने का प्रयास करता है। इसका उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण को क्वांटम स्तर पर समझना है। इसके अंतर्गत स्ट्रिंग थ्योरी और लूप क्वांटम ग्रेविटी जैसी कई सैद्धांतिक दृष्टिकोण शामिल हैं।
4. सतही गुरुत्वाकर्षण (Surface Gravity):
यह किसी खगोलीय पिंड की सतह पर अनुभूत गुरुत्वाकर्षण बल को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिए, पृथ्वी की सतही गुरुत्वाकर्षण 9.8 मीटर/सेकंड² है।
5. सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (Microgravity):
यह एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जहां गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अत्यंत कम होता है, जैसे अंतरिक्ष में। इसे कभी-कभी “शून्य गुरुत्वाकर्षण” भी कहा जाता है।
6. सुदूर गुरुत्वाकर्षण (Tidal Gravity):
यह गुरुत्वाकर्षण का वह प्रभाव है जो एक पिंड के विभिन्न भागों पर अलग-अलग बल लगाता है, जिससे पिंड में ज्वारीय बल उत्पन्न होते हैं। यह प्रभाव मुख्यतः पृथ्वी और चंद्रमा के बीच देखा जाता है।
इन विभिन्न संदर्भों और सिद्धांतों के माध्यम से, गुरुत्वाकर्षण का व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है और इसे कई अलग-अलग दृष्टिकोणों से समझने की कोशिश की जाती है।
गुरुत्वाकर्षण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- पृथ्वी पर पलायन वेग 11.2 किमी/सेकेण्ड
- यदि चक्कर लगाते हुये अंतरिक्षयान से एक सेब छोड़ा जाए तो उसकी गति अंतरिक्षयान के साथ-साथ उसी गति से गतिमान होगा।
- अन्तरिक्ष यात्री निर्वात में गुरूत्वाकर्षण की अनुपस्थिति के कारण खड़े नहीं रह सकते।
- पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा कर रहा कृत्रिम उपग्रह गुरुत्वाकर्षण के विरुद्व अपकेन्द्रीय बल के प्रभाव के कारण नहीं गिरता है।
- एक भू-उपग्रह अपकेन्द्रीय बल के प्रभाव से अपने कक्ष में निरन्तर गति करता है।
- चन्द्रमा की सतह पर पलायन वेग पृथ्वी की सतह की अपेक्षा चन्द्रमा की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या से कम होता है।
- भारहीनता की स्थिति गुरूत्वाकर्षण की शून्य स्थिति के कारण होता है।
- एक लड़की झूले पर बैठी स्थिति में झूल रही है उस लड़की के खड़े हो जाने पर आवर्तकाल कम हो जाएगा।
- लोलक की लम्बाई बढ़ जाने के कारण लोलक घडी गर्मियो में धीमी हो जाती है जबकि शीतकाल में तीव्र गति से चलने लगती है।
- हवा में लोहे और लकड़ी की समान भार की गेंद को एक समान ऊँचाई से गिराने पर लकड़ी की गेंद बाद में गिरेगी।
- लकड़ी का घनत्व लोहे की अपेक्षा कम होता है जिस कारण यदि लोहे व लकड़ी की समान भार की गेंदों को समान ऊँचाई से गिराया जाए तो लकड़ी की गेंद पर वायु का प्रतिरोध अधिक होगा।
- पृथ्वी के धुवों पर पिण्ड का भार सर्वाधिक होता है।
- पृथ्वी के केन्द्र से ध्रुवों की दूरी कम होने के कारण ध्रुवों पर स्थित पिण्ड पर पृथ्वी द्वारा अधिक गुरुत्वीय आकर्षक बल आरोपित होगा, इसलिए ध्रुव पर उसका भार पृथ्वी पर स्थित किसी अन्य स्थान से अधिक होगा।
- लिफट में बैठे हुए व्यक्ति का भार जब लिफट त्वरित गति से ऊपर जा रही है तो भार कम महसूस होता है।
- भू-तुल्यकाली उपग्रह के परिक्रमण की अवधि 24 घंटे कि होती है।
- यदि पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी दोगुनी होती, तो सूर्य द्वारा पृथ्वी पर गुरूत्वाकर्षण बल वर्तमान का 1/4 भाग होता है।
- लोलक की समयावधि लोलक की लम्बाई पर निर्भर करती है।
- पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल यदि अचानक लुप्त हो जाए तो इसका परिणाम पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं का भारत शुन्य हो जाएगा लेकिन द्रव्यमान अपरिपर्तित रहेगा।
- पृथ्वी की सतह पर ह का मान अधिकतम तथा चन्द्रमा पर ह का मान पृथ्वी के गुरूत्वीय त्वरण का 1/6 होता है।
- पीसा की झुकी हुई मीनार गुरूत्व केन्द्र से जाने वाली उर्घ्वाधर रेखा तल के अन्दर रहने के कारण गिरती नहीं है।
- यदि कोई वस्तु ऊपर से गिराई जाती है तो उसके भार अपरिवर्तित रहेगा।
- जब हम भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते है तो ह का मान बढ़ता है।
- चक्रिय झूले पर झूलते समय व्यक्ति को बाहर की ओर धक्का अपकेन्द्रीय बल के कारण महसूस होता है।
- विभिन्न द्रव्यमान वाले दो पत्थर एक साथ किसी इमारत की छत से गिराए जाते है तो दोनोे पत्थर एक साथ जमीन पर पहुँचेगं।
गुरूत्वाकर्षण एवं गुरूत्व के उदाहरण –
- सूर्य एवं अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षक के कारण ही सभी ग्रह लगभग वृताकार एवं निश्चित कक्षओं में सूर्य की परिक्रमा करते है।
- पृथ्वी के गुरूत्व एवं चन्द्रमा के गुरूत्वाकर्षण के कारण ही चन्द्रमा एक निश्चित कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
- सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण की अंतर्क्रिया के कारण पृथ्वी पर स्थित समुदों में ज्वार-भाटा आते है।