Type of Vedas and Features

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है।

  • धर्मग्रंथ
  • ऐतिहसिक ग्रंथ
  • विदेशियों का विवरण
  • पुरातत्व-संबंधी साक्ष्य

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलने वाली महत्वपूर्ण जानकारी
भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है, जिसके संकलन करता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद बसुद्धैव कुटुम्बकम् का उपदेश देता है। भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरुषेय मानती है। वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, एवं अथर्ववेद।

ऋग्वेद

यह आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। ऋक् का अर्थ होता है छन्दोवद्ध रचना या श्लोक। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10,462 ऋचाएँ हैं। इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते है। इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली, इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के बारे में जानकारी मिलती है।
विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गाय़त्री मंत्र है। इसके 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।
इसके 8वें मंडल की हसतलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है।
ऋग्वेद का सबसे बड़ा 10वाँ मंडल है। इसमें नदिस्तुति सूक्त (नदियों की प्रशंसा), पुरुषसूक्त (वैदिक समाजशास्त्र), नासदीय सूक्त (ब्रह्मांड के सृजन से संबंधित विभिन्न अनुमान), सूर्य सूक्त (विवाह श्लोक) आदि सम्मिलित है।
चतुष्वर्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्त्रोत (ऋग्वेद के 10वें मंडल मे वर्णित) पुरुषसूक्त है, जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्व तथा शूद्र) आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख, भुजाओं, जंघाओं और चरणें से उत्प़त्र हुए।
धर्मसूत्र चार प्रमुख जतियों की स्थितियों की व्यवसायों, दायित्वों कर्तव्यों तथा विशेषाधिकारों में स्पष्ट विभेद करता है।
ऋग्वेद के कई परिच्छेदों में प्रयुक्त अधन्य (जिसका वध नहीं किया जाता है) शब्द का संबंध गाय से है।
ऋग्वेद में ब्रह्म का उल्लेख तो है, किन्तु आत्मा का नहीं।
ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गई है।
ब्राह्मण ग्रंथ – ये वेदों के गद्य भाग है जिनके द्वारा वेदों केा समझने में सहायता मिलती है। ऋग्वेद के दो ब्राह्मण हैं- ऐतरेय तथा कौषीतकी।
उपनिषद् – उपनिषद् शब्द ‘उप’ और ‘निष’ धातु से बना है । उप का अर्थ है, समीप और निष का अर्थ है बैठना अर्थात् इसमें छात्र, गुरू के पास बैठकर ज्ञान सीखता था ये वेदों के अन्तिम भाग है अतः इन्हें वेदान्त भी कहा जाता है। कुल उपनिषदों की संख्या 108 है परन्तु दस उपनिषद ही विशेष महत्व के हैं और इन्ही पर आदिगुरु शंकराचार्य ने भाष्य लिखा है। ये दस उपनिषद- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, वृहदारण्यक, ऐतरेय एवं तैत्तिरीय हैं इनमें मुख्यतया आत्मा और ब्रह्म का वर्णन है।

सामवेद

‘साम’ का अर्थ है गायन! इसमें कुल मंत्रों की मौलिक संख्या 1549 है। इन मंत्रों में इसके मात्र 75 मंत्र ही हैं, शेष ऋग्वेद से लिए गऐ है। अतः इसे ऋग्वेद से अभिन्न माना जाता है। इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते है। इसमें 1810 सूक्त है जो प्रायः ऋग्वेद से लिए गए है।
समवेद के मंत्रों का गायन करने वाला उद्गाता कहलाता है। सप्तस्वरों का उल्लेख सामवेद में मिलता है।
ब्राह्मण ग्रन्थ- सामवेद के मूलतः दो ब्राह्मण हैं – ताण्ड्य और जैमिनीय। ताण्डृय ब्राह्मण बहुत बड़ा है। इसीलिए इसे महाब्राह्मण भी कहते हैं, यह 25 अध्यायों में विभक्त हैं, इसीलिए इसे पंचविश भी कहा जाता है। षड्विश ब्राह्मण के परिशिष्ट के रूप में है, इसे ‘अदभुत’ ब्राह्मण भी कहते है।
जैमिनीय ब्राह्मण में यज्ञिक कर्मकाण्ड का वर्णन है।
आरण्यक- इसके दो आरण्यक हैं- जैमिनीय आरण्यक एवं जैमिनीय उपनिषद। छांदोग्य उपनिषद सबसे प्राचीन उपनिषद् माना जाता है। देवकी पुत्र कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख इसी में है। इसमें प्रथम तीन आश्रमों तथा ब्रह्म एवं आत्मा अभिन्नता के विषय में उद्दालक आरूणि एवं उनके पुत्र श्वेतकेतु के बीच विख्यात संवाद का वर्णन है।

यजुर्वेद

यह एक कर्मकाण्डीय वेद है। इसमें विभिन्न यज्ञों से सम्बन्धित अनुष्ठान विधियों का उल्लेख हैं। यह वेद गद्य और पद्य दोनों में रचित है। यह 40 अध्यायों में विभाजित है। इसमे कुल 1990 मंत्र संकलित हैं। यजुर्वेद के कर्मकाण्डों को सम्पन्न कराने वाले पुरोहित को ‘अध्वर्यु’ कहा जाता हैं। यजुर्वेद की दो शाखएं हैं- शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन है।
ब्राह्मण ग्रन्थ – शुल्क यजुर्वेद को केवल एक ब्राह्मण ग्रंथ , शतपथ ब्राह्मण हरै यह सबसे प्राचीन तथा सबसे बड़ा ब्राह्मण माना जाता हैं इसके लेखक महर्षि याज्ञवल्क्य हैं शतपथ ब्राह्मण में जल-प्लावन कथा, पुनर्जन्म का सिद्धन्त, पुरुरवा-उर्वशी आख्यान, रामकथा तथा आश्विन कुमार द्वारा च्यवन ऋषि को यौवन दान का वर्णन है।
कृष्ण यजुर्वेद के ब्राह्मण का नाम तैत्तिरीय ब्राह्मण है।

आरण्यक – यजुर्वेद के आरण्यक वृहदारण्यक तैत्तिरीय और शतपथ हैं।
उपनिषद्- यजुर्वेद के उपनिषद् वृहदारण्यक उपनिषद्, कठोपनिषद, ईशोपनिषद, श्वेताश्वतर उपनिषद् मैत्रायण उपनिषद् एवं महानारायण उपनिषद् हैं।
वृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्क्य-गार्गी का प्रसिद्ध संवाद, तैत्तिरीय उपनिषद् में ‘अधिक अन्न उपजाओ’ एवं कठोपनिषद् में ‘यम और नचिकेता के बीच प्रसिद्ध संवाद का वर्णन है। इस उपनिषद् में आत्मा को पुरुष कहा जाता है।

अथर्ववेद

अथर्वा ऋषि के नाम पर इस वेद का नाम अथर्ववेद पड़ा। अथर्व शब्द ‘अथर्वन का वास्तविक अभिप्राय अग्नि उद्बोधन करने वाला पुरोति मानते हैं इस वेद में कुल 20 अध्याय, 731 सूक्त और 6000 मंत्र है। इस वेद में जादू-टोना, मरण, भूत-प्रेतों आदि के मंत्र तथा नाना प्रकार की औषधियों का वर्णन है। इसमें जन साधरण के लोकप्रिय विश्वासों और अन्धविश्वासों का वर्णन है इसकी अधिकाशं ऋचाएं दुरात्माओ या प्रेतात्माओं से मुक्ति का मार्ग बताती है।
अथर्ववेद की दो शाखाएं शौनक और पिप्पलाद हैं।
ब्राह्मण ग्रथ – इसका एकमात्र ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण हैं, जिसे गोपथ ऋषि ने संकलित किया है।
आरण्यक- अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है।
उपनिषद् – मुण्डकोपनिषद्, माण्डूक्योपनिषद, प्रश्नोंपनिषद्।
मुण्डकोपनिषद् में सत्यमेव जयते एवं यज्ञों को टूटी-फूटी नौकओं के समान कहा गया है, जिसके द्वारा जीवन रूपी भवसागर को पार नहीं किया जा सकता, आदि का उल्लेख मिलता हैं। माण्डूक्योपनिषद सभी उपनिषदों में छोटा है।

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