1857 का विद्रोह (क्रांति)
- विद्रोह के समय इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री- पार्मस्टन
- भारत का गवर्नर-जनरल – लार्ड कैनिंन
- विद्रोह के समय कम्पनी का मुख्य सेनापति- जार्ज एनिसन
- विद्रोह प्रारंभ के बाद नियुक्त सेनापति- कॉलिन कैम्पबेल
- विद्रोह के समय भारत का सम्राट – बहादूरशाह जफर
विद्रोह के कारण-
1857 में अंग्रेजो ने पुरानी बंदूक बैस के स्थान पर नई एनफील्ड राइफल को प्रयोग करने का निर्णय लिया। उसके लिए जो कारतूस बनाए गए उन्हें राइफल में भरने से पहले मुँह से खोलना पड़ता था। इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था। यह चर्बी वाला कारतूस ही 1857 की क्रांति का प्रमुख कारण बना।
विद्रोह का प्रारम्भ
- 29 मार्च,1857 ई॰ को मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने बैरकपुर में गाय की चर्बी मिले कारतूसों को मुँह से काटने से स्पष्ट मना कर दिया और उसने लेफ्टिनेंट बाग एवं मेजर ह्मूसन को गोली मारकर हत्या कर दी। फलस्वरूप उसे गिरफ्तार कर 8 अप्रैल,1857 को फाँसी दे दी गई और रेजीमेण्ट भंग कर दी गई। 24 अप्रैल,1857 को मेरठ मे तैनात देशी घुड़सवार सेना के 99 सिपाहियों ने चर्बी लगे कारतूसों को इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया।
- 9 मई,1857 को इनमें से 85 बर्खास्त कर 10 वर्ष की सजा सुनाई गई। 10 मई,1857 को मेरठ मे ंतैनात पूरी भारतीय सेना ने विद्रोह कर दिया और अपने अधिकारीयों पर गोली चलाई। अपने साथियों को मुक्त करवाकर ये लोग दिल्ली की ओर चल पड़े। मेरठ में तैनात जनरल हेविट के पास 2200 यूरोपीय सैनिक थे परन्तु इस तुफान को रोकने का प्रयास नहीं किया गया। मेरठ विद्रोह 11 मई को दिल्ली पहुँचे और 12 मई,1857 ई॰ को उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
- फाँसी पर चढ़ने से पहले मंगल पांडे ने हल्ला बोल का नारा दिया। मंगल पांडे का संबंध 34वाँ बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री से था।
- 1857 के विद्रोह के पश्चात् सेना का पूर्ण रूप से पुनर्गठन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य एक और विद्रोह न होने देना था।
- इसके लिए स्थापित पील कमीश्न की रिपोट पर सेना मे भारतीय सैनिकों की तुलना मे ंयूरोपीय सैनिकों का अनुपात बढाया गया तथा उच्च सैनिक पदों पर अब भारतीयों की नियुक्ति पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दी गई जो पहले से ही प्रतिबंधित थी। बंगाल की सेना में युरोपीय व भारतीय सैनिकों का अनुपात 1: 2 रखा गया जबकि बंबई, मद्रास, में 2: 5 रखा गया।
1857 ई॰ की क्रांति के बारे में इतिहासकारों का मत
मत | इतिहासकार |
यह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था | बी॰ डी॰ सावरकर |
यह राष्ट्रीय विद्रोह था | डिजरायली |
यह पूर्णतया सिपाही विद्रोह था | स्र जॉन लॉरेन्स एवं सीले |
यह अंग्रेजो के विरुद्ध हिन्दू एवं मुसलमानों का षड्यंत्र था | जेम्स आउट्रम, डब्ल्यू॰ टेलर |
बर्बरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध था | टी॰ आर होम्स |
यह धर्मान्धों का ईसाइयों के विरुध युद्ध था | एल॰ ई॰ आर॰ रीज |
- बिहार, अवध तथा अन्य उन स्थानों के व्यक्ति को, जिन्होंने 1857 ई॰ के क्रांति में भाग लिया था, गैर लड़ाकू घोषित किया गया और सेना में उनकी संख्या कम कर दी गई तथा सिख, गोरखा और पठानों को जिन्होंने 1857 के क्रांति को दबाने में अंग्रेजो की मदद की थी, लड़ाकू जातियाँ घोषित की गयी और उन्हें बड़ी संख्या में सेना में भर्ती किया गया।
- ह्मूरोज ने लक्ष्मीबाई की वीरता से प्रभावित होकर कहा था कि क्रांतिकारियों में वह एक अकेली मर्द थी।
1857 ई॰ की महान क्रांति के प्रमुख केन्द्र
केन्द्र | भारतीय नायक | विद्रोह की तिथि | बिटिश नायक (विद्रोह दबाने वाला) | विद्रोह की तिथि |
जगदीशपुर | कुँअर सिंह | अगस्त, 1857 ई॰ | विलियम टेलर एवं विंसेट आयर | 1858 ई॰ |
दिल्ली | बख्त खाँ (सैन्य नेतृत्व) | 11,12 मई, | निकलसन (मारा गया), एवं हडसन | 21 सितम्बर, 1857 ई॰ |
कानपुर | नाना साहब (धुन्धु पंत), तात्या टोपे (सैन्य नेतृत्व) | 5 जून, 1857 ई॰ | कैंपबेल | 6 सितम्बर, 1857 ई॰ |
लखनऊ | बेगम हजरत महल (मुहम्मदी खातून) | 4 जून, 1857 ई॰ | हेनरी लॉरेन्स (मारा गया), कैंपबेल | मार्च, 1858 ई॰ |
झाँसी | रानी लक्ष्मीबाई | जून, 1857 ई॰ | ह्मूरोज | 3 अप्रैल, 1858 ई॰ |
ईलाहाबाद | लियाकत अली | 1857 ई॰ | कर्नल नील | 1858 ई॰ |
बरेली | खान बहादूर खाँ | 1857 ई॰ | हडसन | 1858 ई॰ |
फैजाबाद | मौलवी अहमद उल्ला | 1857 ई॰ | कर्नल नील | 1858 ई॰ |
फतेहपुर | अजीमुल्ला | 1857 ई॰ | जेनरल रेनर्ड | 1858 ई॰ |
- तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचन्द्र पांडुरंग था। उन्हें सिंधिया के सामंत मान सिह ने धोखा देकर पकड़वा दिया। 18 अपै्रल, 1859 को शिवपुरी में अंग्रेजों द्वारा फाँसी पर लटका दिया गया था।
विद्रोह का महत्व
- 1857 ई॰ के विद्रोह की विफलता ने भारतीयों को यह दिखा दिया कि सिर्फ सेना और शक्ति के बल पर ही अंग्रेजों से मुक्ति नहीं मिल सकती बल्कि सभी वर्गो का सहयोग, समर्थन और राष्ट्रीय भावना आवश्यक है।
- 1857 ई॰ के विद्रोह से भारतीयों में राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण हुआ। इस विद्रोह ने उन्हें एकता तथा संगठन का पाठ पढ़ाया और राष्ट्रीय जीवन में यह उनकी प्रेरण का स्त्रोत बना।
- विद्रोह के पश्चात् ब्रिटिश सरकार का ध्यान देश की आन्तरिक दशा को सुधारने की ओर उन्मुख हुआ। भारतीय इतिहास में यहीं से संवैधानिक विकास का सुत्रपात हुआ और धीरे-धीरे भारतीयों को अपने देश में शासन में भाग लेने का अवसर दिया जाने लगा इस तरह भारत में प्रजातान्त्रिक शासन का बीजारोपण हुआ।
1857 विद्रोह के परिणाम
- यद्यपि 1857 ई॰ का विद्रोह असफल रहा लेकिन इसका तात्कालिक और दूरगामी परिणाम अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इस विद्रोह के बाद साम्राज्य सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया। इस विद्रोह का एक अन्य परिणाम था – महारानी विक्टोरिया का घोषणा-पत्र।
- विक्टोरिया का घोषण पत्र – लाई कैनिंग ने 1 नवम्बर, 1858 ई॰ को इलाहाबाद के मिण्टो-पार्क में अपना दरबार लगाया और यहीं महारानी विक्टोंरिया का घोषण-पत्र पढ़ा।
- 1857 के विद्रोह में हिन्दुओं और मुसलमानों ने समान रूप से भाग लिया । इसका नेता बहादुरशाह जफर मुसलमान ही था। अंग्रेज क्रांति के बाद हिन्दुओं का पक्ष लेेने लगे और मुसलमानों से घृणा करने लगे। बाद मं उन्होंने मुस्लिम साम्प्रयदायिकता का सहारा लिया तथा दोनों समप्रदायों को एक-दूसरे से लड़ाकर राष्ट्रीय आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया इसकी अन्तिम परिणति भारत के विभाजन के रूप में सामने आई।