भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसकी शुरुआत 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने की। इसे अंग्रेजी में “Quit India Movement” कहा जाता है। गांधी जी ने मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में एक ऐतिहासिक भाषण में देशवासियों से आह्वान किया: “करो या मरो” (Do or Die)।
पृष्ठभूमि:
- द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना किसी सलाह-मशवरे के युद्ध में झोंक दिया, जिससे भारतीय नेताओं में आक्रोश था।
- 1942 में ब्रिटेन ने क्रिप्स मिशन के माध्यम से भारत को युद्ध के बाद आत्म-शासन का आश्वासन दिया, लेकिन यह मिशन असफल रहा।
- इस विफलता और ब्रिटिश दमनकारी नीतियों से आहत होकर गांधी जी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए जन आंदोलन शुरू किया।
प्रमुख उद्देश्य:
- ब्रिटिश हुकूमत से तत्काल पूर्ण स्वतंत्रता की मांग।
- अंग्रेजों को भारत से अविलंब हटने का आदेश देना।
- अहिंसात्मक तरीके से देशव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान।
भारत छोड़ो आंदोलन के कारण
- द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भागीदारी:
- ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना किसी परामर्श के युद्ध में झोंक दिया, जिससे भारतीय नेता नाराज हुए।
- भारतीय जनता को युद्ध से कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं था, लेकिन ब्रिटिश शासन के लिए जान-माल की कुर्बानी देनी पड़ी।
- क्रिप्स मिशन की विफलता (1942):
- ब्रिटेन ने भारत को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद “डोमिनियन स्टेटस” देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन यह भारतीय नेताओं के लिए अस्वीकार्य था।
- क्रिप्स मिशन से भारतीयों को यह एहसास हुआ कि ब्रिटेन का असली इरादा सत्ता हस्तांतरण का नहीं है।
- अंग्रेजों का दमनकारी शासन:
- ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीयों पर कठोर दमनकारी नीतियाँ लागू कीं। प्रेस पर पाबंदी, सभा-स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों का हनन जनता में आक्रोश का कारण बना।
- आर्थिक संकट और बेरोजगारी:
- युद्ध के कारण भारत में भुखमरी, महंगाई, और बेरोजगारी चरम पर थी, जिससे जनता का आक्रोश बढ़ गया।
- गरीब वर्ग, किसान और मजदूर, जिनकी स्थिति पहले से ही खराब थी, आंदोलन में कूद पड़े।
- स्वतंत्रता प्राप्ति का दबाव:
- 1940 के दशक तक भारतीय जनता स्वतंत्रता के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी थी। महात्मा गांधी ने इस समय को निर्णायक संघर्ष के लिए सही माना।
भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व
- जनांदोलन का रूप:
- यह पहला ऐसा आंदोलन था जिसमें हर वर्ग—किसान, मजदूर, छात्र, महिलाएं, व्यापारी और नौजवान—ने भाग लिया।
- स्थानीय स्तर पर लोगों ने नेताओं की अनुपस्थिति में आंदोलन को संभाला और जारी रखा।
- करो या मरो का मंत्र:
- गांधी जी का “करो या मरो” (Do or Die) का आह्वान जनता के लिए प्रेरणास्रोत बना। इसने लोगों को स्वतंत्रता के लिए आखिरी लड़ाई के लिए तैयार किया।
- अंग्रेजी शासन की वैधता पर सवाल:
- आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब भारत में अंग्रेजों का रहना असंभव है।
- ब्रिटिश शासन की साख और नैतिक अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो गए।
- राष्ट्रीय एकता का उदाहरण:
- इस आंदोलन ने भारत की राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया। विभिन्न समुदायों, धर्मों और प्रांतों ने एकजुट होकर संघर्ष किया।
- अंतिम संघर्ष:
- भारत छोड़ो आंदोलन ने यह संदेश दिया कि अब भारतीय जनता आधी-अधूरी स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करेगी। यह भारत की आजादी की दिशा में अंतिम धक्का था।
भारत छोड़ो आंदोलन के परिणाम
- नेताओं की गिरफ्तारी और दमन:
- गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- कई महीनों तक आंदोलन का नेतृत्व जनता और स्थानीय नेताओं ने किया।
- अंग्रेजों का कठोर दमन:
- आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीतियाँ अपनाईं। हजारों आंदोलनकारियों को जेल में डाला गया, कई स्थानों पर गोलीबारी हुई।
- आंशिक विफलता:
- आंदोलन अपने तत्काल उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाया। अंग्रेज तत्काल भारत छोड़कर नहीं गए, लेकिन उन्होंने महसूस कर लिया कि अब भारत पर शासन करना संभव नहीं है।
- स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक मोड़:
- आंदोलन ने भारतीयों में स्वतंत्रता के प्रति अडिग विश्वास पैदा किया और ब्रिटिश हुकूमत की आधारशिला हिला दी।
- द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होते ही ब्रिटिश सरकार ने भारत से सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया तेज की।
- 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता:
- भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटेन को यह एहसास दिला दिया कि भारत को स्वतंत्र करना ही एकमात्र विकल्प है।
- इस आंदोलन के बाद सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू हुई और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।
आंदोलन के प्रमुख घटनाक्रम:
- 9 अगस्त 1942: गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल सहित कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।
- देशव्यापी प्रदर्शन: आंदोलन के समर्थन में पूरे देश में जुलूस, हड़तालें और प्रदर्शन शुरू हुए।
- छात्र और युवा: इस आंदोलन में विशेष रूप से छात्रों और युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- कई स्थानों पर हिंसा: हालांकि आंदोलन अहिंसात्मक था, लेकिन कुछ जगहों पर हिंसा भी हुई, जिससे ब्रिटिश प्रशासन ने क्रूरता से इसे दबाने की कोशिश की।
- गांधी जी की अनुपस्थिति में भी जारी: नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद आंदोलन रुकने के बजाय और उग्र हो गया, जिसमें छोटे किसान, मजदूर, छात्र और महिलाएं भी शामिल हुए।
अंग्रेजों की प्रतिक्रिया:
- आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कठोर दमन का सहारा लिया।
- हजारों लोग गिरफ्तार हुए, और कई जगहों पर फायरिंग में आंदोलनकारी मारे गए।
- प्रेस पर कड़ा सेंसर लगा दिया गया, और कांग्रेस पार्टी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
निष्कर्ष
भारत छोड़ो आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम और निर्णायक चरण था। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को यह स्पष्ट संदेश दिया कि अब भारत गुलामी स्वीकार नहीं करेगा। जनता के आत्मविश्वास, बलिदान और संघर्ष ने स्वतंत्रता की नींव मजबूत की और 1947 में आजादी का मार्ग प्रशस्त किया।