मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के 9 फरवरी, 2025 को इस्तीफा देने के बाद राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ गई है। (मणिपुर में लगेगा राष्ट्रपति शासन! क्या है राष्ट्रपति शासन? President’s rule will be imposed in Manipur! What is President’s rule?) वर्तमान में, बीरेन सिंह कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं। यदि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 12 फरवरी तक नए मुख्यमंत्री का चयन नहीं कर पाती है और विधानसभा सत्र नहीं बुलाया जाता है, तो संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 174(1) के अनुसार, राज्यों की विधानसभा की दो बैठकों के बीच अधिकतम 6 महीने का अंतर होना चाहिए। मणिपुर विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त, 2024 को हुआ था, इसलिए अगला सत्र 12 फरवरी, 2025 तक होना आवश्यक है। यदि इस समय सीमा के भीतर नया मुख्यमंत्री नहीं चुना जाता है और विधानसभा सत्र नहीं बुलाया जाता है, तो राज्य में राष्ट्रपति शासन की संभावना बढ़ जाती है
राष्ट्रपति शासन के दौरान, राज्य सरकार के सभी कार्य केंद्र सरकार को सौंप दिए जाते हैं, और राज्य विधानमंडल के कार्य संसद को ट्रांसफर हो जाते हैं। इस अवधि में, राज्यपाल राज्य का प्रशासनिक कार्यभार संभालते हैं।
भाजपा के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा वर्तमान में मणिपुर में पार्टी विधायकों और सहयोगी दलों के साथ बैठकें कर रहे हैं, लेकिन अभी तक नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। यदि आज (12 फरवरी) के अंत तक नया मुख्यमंत्री नहीं चुना जाता है, तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की संभावना है।

राष्ट्रपति शासन क्या होता है?
राष्ट्रपति शासन भारत के संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत लागू किया जाता है, जब किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र (Governance) विफल हो जाता है। इसका मतलब यह होता है कि राज्य की सरकार ठीक से काम नहीं कर पा रही है और वहां की कानून-व्यवस्था या राजनीतिक स्थिरता बनी नहीं रह सकती।
राष्ट्रपति शासन कब लगाया जाता है?
राष्ट्रपति शासन निम्नलिखित परिस्थितियों में लगाया जा सकता है:
- संविधान के अनुसार सरकार न चलना – जब राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हो जाए।
- राजनीतिक अस्थिरता – यदि किसी राज्य में बहुमत वाली सरकार न हो और कोई भी दल सरकार बनाने में विफल रहे।
- कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ना – यदि राज्य में हिंसा, अराजकता या विद्रोह जैसी स्थिति बन जाए।
- विधानसभा भंग हो जाना – जब राज्य की विधानसभा भंग हो जाती है और चुनाव तक कोई नई सरकार नहीं बन पाती।
- केंद्र सरकार की सिफारिश पर – यदि केंद्र सरकार को लगता है कि राज्य में संवैधानिक संकट है, तो राष्ट्रपति इसे लागू कर सकते हैं।
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद क्या होता है?
- राज्य सरकार को हटा दिया जाता है, और राज्य का प्रशासन राज्यपाल के हाथों में चला जाता है।
- विधानसभा निलंबित या भंग कर दी जाती है (यानी, राज्य में कोई चुनी हुई सरकार नहीं रहती)।
- केंद्र सरकार सीधे राज्य का प्रशासन चलाती है और सभी बड़े फैसले राष्ट्रपति के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा लिए जाते हैं।
- राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पद से हटा दिया जाता है।
राष्ट्रपति शासन कितने समय तक रहता है?
- प्रारंभ में 6 महीने के लिए लागू किया जाता है।
- अगर जरूरत पड़ी तो इसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए हर 6 महीने में संसद की मंजूरी जरूरी होती है।
- 3 साल से ज्यादा राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता (संविधान के 44वें संशोधन के बाद)।
भारत में राष्ट्रपति शासन के उदाहरण
भारत में कई बार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।
- सबसे पहला राष्ट्रपति शासन 1951 में पंजाब में लगाया गया था।
- अब तक 100+ बार अलग-अलग राज्यों में राष्ट्रपति शासन लग चुका है।
- सबसे लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर में 6 साल (1990-96) तक राष्ट्रपति शासन रहा।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति शासन तब लगाया जाता है जब राज्य सरकार असफल हो जाती है और वहां कानून-व्यवस्था को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इस दौरान, राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार के हाथ में चला जाता है, और राज्यपाल प्रमुख प्रशासक बन जाते हैं।