सूर वंश का इतिहास- शेरशाह सूरी || History of Survansh – Shershah Suri


बिलग्राम के युद्ध ने हुमायूँ के भाग्य का अन्त कर दिया। इस युद्ध के परिणाम स्वरूप भारत में मुगलों की सत्ता समाप्ति के कगार पर पहुंच गई तथा द्वितीय अफगान राज्य मार्ग प्रशस्त हुआ जिसका संस्थापक शेरशाह सूरी था।

शेरशाह सूरी

जन्म – 1486 ई में
जन्मस्थान – नरनौल
मूलनाम – फरीद
पिता – हसन खाँ
उपाधि – शेर खां, हजरत-ए-आला व सुल्तान-उल-अदल।
राज्याभिषेक – 10 जून 1540 ई. (आगरा)


प्रारम्भिक जीवन – शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। उनका जन्म 1486 ई में नरनौल में हुआ था उस समय दिल्ली का शासक बहलोल लोदी था। शेरशाह इब्राहिम खां सूर का प्रपौत्र तथा हसन खा का पुत्र था। इब्राहिम के पूर्वज मूलतः अफगानिस्तान के निवासी थे। जब सुल्तान बहलोल लोदी ने अफगानों को भारत में आने का निमंत्रण दिया था तो उसी समय इब्राहिम खां ने अपने पुत्र हसन खां के साथ जीविका की खोज में भारत आया तथा पंजाब के बजवाड़ा नामक स्थान पर अपना निवास बनाया।

शेर शाह सूरी का शासनकाल 1540 से 1545 तक चला और इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्य किए:

  1. रोहतासगढ़ किला, किला ए कुहना नामक मस्जिद का निर्माण शेरशाह के द्वारा किया गया था। शेरशाह ने रोहतासगढ़ के दूर्ग एवं कन्नौज के स्थान पर शेरसूर नामक नगर बसाया।
  2. शेरशाह का उतराधिकारी उसका पुत्र इस्लाम शाह था। शेरशाह ने भूमि की माप के लिए 32 अंकवाला सिकन्दरी गज एवं सन की डंडी का प्रयोग किया शेरशाह के समय पैदावार का लगभग 1/3 भाग सरकार लगान के रूप में वसूल करती है।
  3. शेरशाह ने सोने के सिक्के अशरफ, चाँदी का रूपया (178 ग्रेन) तथा ताँबे का दाम (380 ग्रेन) नामक सिक्के चलाए।
  4. चाँदी का रुपया सर्वप्रथम शेरशाह ने जारी किया । चाँदी के रुपय तांबे के दाम का विनिमय अनुपात 1ः64 का था।
  5. शेरशाह के समय ताँबे के अन्य सिक्के थे – अधोला, पावला, दमड़ी एवं जीतल।
  6. कबूलियत एवं पटटा प्रथा की शुरुआत शेरशाह ने की।
  7. शेरशाह ने 1541 ई में पाटलिपुत्र को पटना के नाम से पुनः स्थापित किया इसने ग्रेंड ट्रंक रोड की मरम्मत करवायी। डाक प्रथा का प्रचलन शेरशाह के द्वारा की किया गया।
  8. मलिक मुहम्मद जायसी शेरशाह के समकालीन थे।

शेर शाह सूरी द्वारा किए गए युद्धों ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कई महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें से प्रमुख हैं:

  1. हुमायूँ के साथ लड़ाई: शेर शाह सूरी ने मुगल सम्राट हुमायूँ को पराजित करने के लिए कई युद्ध लड़े। इनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण युद्ध थे:
    • चौसा की लड़ाई (1539): इस लड़ाई में शेर शाह ने हुमायूँ को पराजित किया और अपने लिए “शेर शाह” की उपाधि अर्जित की।
    • कन्नौज की लड़ाई (1540): इस निर्णायक युद्ध में शेर शाह ने हुमायूँ को पूरी तरह पराजित किया और दिल्ली का शासन संभाला।
  2. राजपूत राज्यों के साथ संघर्ष: शेर शाह सूरी ने कई राजपूत राज्यों के साथ भी युद्ध किए और उन्हें अपने साम्राज्य में शामिल किया।
  3. अवध और बंगाल पर विजय: शेर शाह ने अपने शासनकाल में अवध और बंगाल जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को जीत लिया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

शेर शाह सूरी का शासनकाल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय अवधि है। उनका शासन 1540 से 1545 तक चला। इस दौरान उन्होंने कई प्रमुख सुधार किए और अपने प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाते हैं। उनके शासनकाल की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  1. प्रशासनिक सुधार: शेर शाह ने प्रशासनिक प्रणाली को पुनर्गठित किया और इसे अधिक व्यवस्थित और कुशल बनाया। उन्होंने राजस्व संग्रह के लिए नई व्यवस्था स्थापित की और अधिकारी नियुक्त किए।
  2. सड़क और संचार व्यवस्था: उन्होंने एक विस्तृत सड़क नेटवर्क का निर्माण किया, जिसमें प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड भी शामिल है। यह सड़क पूर्वी और पश्चिमी भारत को जोड़ती थी और व्यापार और यात्रा को आसान बनाती थी।
  3. मुद्रा सुधार: शेर शाह सूरी ने भारतीय मुद्रा प्रणाली को सुधारते हुए चाँदी का रुपया जारी किया, जो बाद में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित हो गया।
  4. सामरिक और सैन्य सुधार: उन्होंने एक मजबूत और संगठित सेना तैयार की और अपने सैन्य अभियानों में सफलता हासिल की। उन्होंने अपने साम्राज्य को विस्तारित किया और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की।
  5. न्यायिक सुधार: शेर शाह ने न्यायिक प्रणाली को सुव्यवस्थित किया और शीघ्र न्याय की व्यवस्था की, जिससे लोगों को अधिक न्याय मिल सके।
  6. साम्राज्य का विस्तार: शेर शाह ने अपने शासनकाल में बंगाल, बिहार, उड़ीसा, और पंजाब जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की और सूरी साम्राज्य का विस्तार किया।

शेर शाह सूरी का शासनकाल केवल पाँच वर्षों का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई उल्लेखनीय सुधार किए और अपने साम्राज्य को मजबूत बनाया। उनके प्रशासनिक और सैन्य सुधारों का प्रभाव भारतीय इतिहास में लंबे समय तक रहा।

शेर शाह सूरी की मृत्यु 22 मई 1545 को हुई थी। उनकी मृत्यु एक युद्ध के दौरान, कलिंजर के किले में बारूद के गोदाम में आग लगने के कारण हुई थी।

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