गांधी-इरविन समझौता: सम्पूर्ण इतिहास एवं पृष्ठभूमि || Gandhi-Irwin Pact: Complete History and Background

गांधी-इरविन समझौता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह समझौता 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच हुआ। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य था—भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के बीच वार्ता स्थापित करना और राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करना। Gandhi-Irwin Pact: Complete History and Background

गांधी-इरविन समझौता: सम्पूर्ण इतिहास एवं पृष्ठभूमि || Gandhi-Irwin Pact: Complete History and Background

गांधी-इरविन समझौता: पृष्ठभूमि

1. साइमन कमीशन (1927) और भारतीय असंतोष

  • 1927 में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की, जिसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था।
  • पूरे भारत में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ, और भारतीयों ने “साइमन, गो बैक” के नारे लगाए।
  • इस आंदोलन में लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज हुआ, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

2. कांग्रेस का पूर्ण स्वराज प्रस्ताव (1929)

  • 1929 में लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज (Complete Independence) का प्रस्ताव पारित हुआ।
  • 26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।

3. सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी मार्च (1930)

  • महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की यात्रा शुरू की।
  • 6 अप्रैल 1930 को गांधीजी ने दांडी पहुंचकर नमक कानून तोड़ा, जिससे नमक सत्याग्रह की शुरुआत हुई।
  • यह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध का प्रतीक बन गया।
  • पूरे देश में यह आंदोलन फैल गया, और लाखों लोगों ने ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन किया।

4. ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति

  • ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए कई कठोर कदम उठाए।
  • गांधीजी सहित 60,000 से अधिक सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया
  • ब्रिटिश सरकार आंदोलन को रोकने में विफल रही और जनता का समर्थन लगातार बढ़ता गया।

गांधी-इरविन समझौते की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  1. ब्रिटिश सरकार पर दबाव: आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठा पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  2. आर्थिक क्षति: नमक सत्याग्रह और बहिष्कार आंदोलनों से ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ।
  3. लॉर्ड इरविन का नरम रवैया: इरविन, गांधीजी के साथ समझौते के पक्ष में थे, ताकि शांति बहाल की जा सके।
  4. गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस की भागीदारी: ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि कांग्रेस भी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग ले।

गांधी-इरविन समझौता (5 मार्च 1931)

समझौते की मुख्य शर्तें

1. ब्रिटिश सरकार की ओर से:

  • सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाएगा (जो हिंसा में शामिल नहीं थे)।
  • भारतीयों को नमक बनाने और बेचने की अनुमति दी जाएगी।
  • जब्त की गई संपत्ति वापस की जाएगी
  • शांतिपूर्ण आंदोलनों में सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी
  • ब्रिटिश सरकार कांग्रेस के साथ संविधान सुधारों पर चर्चा करेगी

2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से:

  • कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करेगी
  • गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेंगे।
  • ब्रिटिश सरकार के साथ शांतिपूर्ण वार्ता का समर्थन किया जाएगा।

गांधी-इरविन समझौते का प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव:

  1. ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच संवाद की शुरुआत हुई
  2. कांग्रेस को वैध राजनीतिक पहचान मिली।
  3. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी की भागीदारी संभव हुई

नकारात्मक प्रभाव:

  1. क्रांतिकारी नेताओं को रिहा नहीं किया गया (जैसे भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु)।
  2. कांग्रेस के भीतर और अन्य दलों में इस समझौते को लेकर असंतोष रहा।
  3. गोलमेज सम्मेलन से कोई ठोस परिणाम नहीं निकला

गांधी-इरविन समझौते के बाद की घटनाएँ

1. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931)

  • गांधीजी 7 सितंबर 1931 को लंदन गए।
  • सम्मेलन में गांधीजी और डॉ. भीमराव अंबेडकर के बीच दलितों के लिए पृथक निर्वाचन के मुद्दे पर मतभेद हुआ।
  • ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस की मांगें अस्वीकार कर दीं।
  • गांधीजी निराश होकर भारत लौट आए।

2. पुनः दमनकारी नीति और गांधीजी की गिरफ्तारी (1932)

  • गांधीजी ने भारत लौटने के बाद आंदोलन जारी रखने की घोषणा की।
  • ब्रिटिश सरकार ने फिर से सविनय अवज्ञा आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया और गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया।
  • 1932 में पूना समझौता हुआ, जिसमें दलितों के लिए अलग निर्वाचन मंडल की जगह आरक्षित सीटों की व्यवस्था की गई।

निष्कर्ष

  • गांधी-इरविन समझौता एक महत्वपूर्ण राजनीतिक समझौता था, जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा दी।
  • यह पहला अवसर था जब ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी और कांग्रेस को एक वैध राजनीतिक शक्ति के रूप में स्वीकार किया।
  • हालांकि, यह समझौता सभी भारतीयों को संतुष्ट नहीं कर सका, और स्वतंत्रता संग्राम जारी रहा।
  • अंततः, 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई

“गांधी-इरविन समझौता भले ही पूर्ण सफलता न रहा हो, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।” 🚩

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