ध्वनि क्या है-परिभाषा, प्रकार, कारण, लक्ष्ण,|| What is Sound – Definition, Types, Causes, Characteristics.

ध्वनि एक प्रकार की यांत्रिक तरंग (mechanical wave) है जो माध्यम (जैसे वायु, जल, या ठोस पदार्थ) में कणों के दोलन (oscillation) के कारण उत्पन्न होती है। यह तरंगें अनुदैर्ध्य होती हैं, जिसमें कणों का कंपन तरंग के संचरण की दिशा में होता है।

ध्वनि के प्रकार

ध्वनि को उसके गुणों और उपयोग के आधार पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। यहां कुछ प्रमुख प्रकार दिए गए हैं:

1. श्रव्य ध्वनि (Audible Sound)

  • परिभाषा: यह वह ध्वनि है जिसे मनुष्य सुन सकता है। इसकी आवृत्ति 20 हर्ट्ज़ (Hz) से 20,000 हर्ट्ज़ (20 kHz) के बीच होती है।
  • उदाहरण:
    • बातचीत की आवाज़
    • संगीत
    • वाहन का हॉर्न

2. अश्रव्य ध्वनि (Inaudible Sound)

  • यह ध्वनि की दो श्रेणियों में विभाजित होती है:

(i) अल्पश्रव्य ध्वनि (Infrasonic Sound)

  • परिभाषा: यह वह ध्वनि है जिसकी आवृत्ति 20 हर्ट्ज़ से कम होती है, और मनुष्य इसे सुन नहीं सकता।
  • उदाहरण:
    • भूकंप के दौरान उत्पन्न होने वाली तरंगें
    • हाथी की कम आवृत्ति वाली आवाज़, जिसे मनुष्य नहीं सुन सकते

(ii) अतिश्रव्य ध्वनि (Ultrasonic Sound)

  • परिभाषा: यह वह ध्वनि है जिसकी आवृत्ति 20,000 हर्ट्ज़ से अधिक होती है, और मनुष्य इसे सुन नहीं सकते।
  • उदाहरण:
    • चमगादड़ द्वारा उत्पन्न ध्वनि
    • सोनार सिस्टम में उपयोग की जाने वाली ध्वनि
    • चिकित्सा में अल्ट्रासाउंड जांच

3. संगीतमय ध्वनि (Musical Sound)

  • परिभाषा: यह वह ध्वनि है जो नियमित और सुरीली होती है और संगीत के रूप में आनंददायक होती है।
  • उदाहरण:
    • पियानो या गिटार की ध्वनि
    • गायक की मधुर आवाज़

4. कर्कश ध्वनि (Noise)

  • परिभाषा: यह वह ध्वनि है जो अनियमित और अप्रिय होती है।
  • उदाहरण:
    • ट्रैफिक का शोर
    • निर्माण स्थल की ध्वनि
    • खराब स्पीकर से उत्पन्न ध्वनि

5. प्रतिध्वनि (Echo)

  • परिभाषा: यह ध्वनि की वह प्रकार है जो किसी सतह से परावर्तित होकर वापस लौटती है और थोड़ी देर बाद सुनाई देती है।
  • उदाहरण:
    • पहाड़ी क्षेत्रों में चिल्लाने पर अपनी आवाज़ का लौटकर आना
    • खाली कमरे में तेज आवाज़ करने पर गूंज सुनाई देना

ध्वनि के कुछ महत्वपूर्ण गुण:

  1. आवृत्ति (Frequency): ध्वनि तरंग की आवृत्ति यह निर्धारित करती है कि ध्वनि कितनी ऊँची या नीची (pitch) होगी।
  2. आमplitude (Amplitude): यह ध्वनि की तीव्रता या जोर को दर्शाता है।
  3. गति (Speed): माध्यम के अनुसार ध्वनि की गति बदलती है, जैसे वायु में लगभग 343 मीटर/सेकंड की गति से चलती है।
  4. गुण (Quality): ध्वनि का गुण या स्वर हमें विभिन्न ध्वनियों के बीच अंतर करने में सक्षम बनाता है, जैसे कि दो अलग-अलग वाद्ययंत्रों से उत्पन्न ध्वनियों के बीच।

ध्वनि उत्पन्न होने के कारण

ध्वनि तब उत्पन्न होती है जब कोई वस्तु कंपन करती है। यह कंपन माध्यम के कणों को संपीड़न और विरलन के रूप में तरंगों के रूप में संचारित करता है। इस प्रक्रिया के कारण ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं।

उदाहरण:

  • जब गिटार के तार को झटका दिया जाता है, तो तार कंपन करने लगता है, और यह कंपन हवा में ध्वनि तरंगों के रूप में फैलता है।
  • तबला, ढोलक, या किसी अन्य वाद्ययंत्र को बजाने पर ध्वनि उत्पन्न होती है क्योंकि उसकी सतह कंपन करती है।

ध्वनि के लक्षण

ध्वनि के कुछ प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:

  1. आवृत्ति (Frequency):
    • यह ध्वनि की तीव्रता (pitch) को निर्धारित करती है।
    • उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि को उच्च स्वर (high pitch) और निम्न आवृत्ति वाली ध्वनि को निम्न स्वर (low pitch) कहते हैं।
  2. आमplitude (Amplitude):
    • यह ध्वनि की तीव्रता या जोर को दर्शाता है।
    • अधिक अम्प्लीट्यूड वाली ध्वनि जोरदार होती है, जबकि कम अम्प्लीट्यूड वाली ध्वनि मंद होती है।
  3. गति (Speed):
    • ध्वनि की गति माध्यम के आधार पर भिन्न होती है।
    • सामान्य तापमान और दाब पर हवा में ध्वनि की गति लगभग 343 मीटर/सेकंड होती है।
  4. गुण (Quality/Timbre):
    • यह ध्वनि की वह विशेषता है जो हमें विभिन्न ध्वनियों के बीच अंतर करने में सक्षम बनाती है।
    • यह किसी व्यक्ति की आवाज़, वाद्ययंत्र की ध्वनि, या अन्य ध्वनियों की विशिष्टता को निर्धारित करता है।

ध्वनि के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

  • पराध्वनिक जेट से वायुमण्डल मे ओजोन परत को क्षति पहुँचती है।
  • ध्वनि की तीव्रता मापने मे डेसीबल इकाई का प्रयोग किया जाता है।
  • ध्वनि के स्त्रोत व परावर्तित सतह के मध्य न्युनतम दूरी 16.5 मीटर होनी चाहिए जिससे कि प्रति ध्वनि स्पष्ट रूप से सुनाई दे सके।
  • वायु में ध्वनि का वेग 343 मी. सेकेण्ड होता है
  • अनुरणन के कारण सिनेमा घरों बडे़ सभागरों आदि में ध्वनि स्त्रोत बंद होने के बाद कुछ देर तक ध्वनि सुनाई देती हैं
  • चन्द्रमा पर वायुमंडल नहीं होने के कारण चन्द्रमा के धरातल पर दो व्यक्ति, एक दुसरे की बात नहीं सुन सकते हैं,
  • वह जैव पद्धति जिसमें पराश्रव्य ध्वनि का प्रयोग किया जात है उसे सोनोग्राफी कहते है।
  • विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार 45कइ की तीव्रता ध्वनि मानव के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
  • चमगादड़ अंधेरी रातों में उड़ सकते है और अपना शिकार भी कर सकते है इसका कारण – वे पराध्वनि तंरगें उत्पन्न करते हैं और उन्हीं के द्वारा निर्देंशित होते है।
  • टी.वी. रिमोट में अवरक्त तरंगो का प्रयोग किया जाता है।
  • टेलीविजन ग्राही के दूरस्थ नियन्त्रण में अवरक्त विकिरण विद्युत चुम्बकीय विकिरण प्रयोग किया जाता है।
  • जब सितार और बाँसुरी पर एक ही स्वर बजाया जाए, तो उनसे उत्पन्न ध्वनि का भेद ध्वनि गुणता के आधार पर किया जाता है।
  • जल, लोहा व नाइट्रोजन में ध्वनि के वेगों का आरोही क्रम क्रमश:
  • नाइट्रोजन जल लोहा ।।
  • ध्वनि की चाल ठोस माध्यम में सर्वाधिक द्रव माध्यम में उससे कम तथा गौसीय माध्यम में सबसे कम होती है।
  • तापमान के घटने से ध्वनि का वेग घटता है
  • ध्वनि निर्वात से होकर नहीं गुजर सकती है।
  • ध्वनि तरंगे ठोस तथा गैस दोनों माध्यमों में गमन कर सकती है तथा धातु में ध्वनि का वेग सबसे अधिक होता है।
  • स्टेथोस्कोप ध्वनि के परार्वतन के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
  • महिलाओं की आवाज पुरूषों की अपेक्षा तीक्ष्ण होती है क्योंकि महिलाओं की आवाज का तारत्व अधिक होता है।
  • एकॉस्टिक्स में ध्वनि का अध्ययन किया जाता हैं ।
  • ध्वनि तरंगांे में ध्रुवण सी घटना नहीं हो सकती है।
  • ध्वनि का तारत्व आवृति पर निर्भर करता है।
  • प्रतिध्वनि का कारण ध्वनि तरंगों का परावर्तन होता है।
  • पराश्रव्य तरंगों की आवृति लगभग 20,000 हर्ट्ज यसे अधिक होता है।
  • मानव द्वारा श्रव्य तरंगों की आवृति 20 से 20000 हर्ट्ज तक होता है।
  • पराश्रव्य ध्वनि तरंगें कुतों एवं डॉफिन मछली द्वारा सुनी जा सकती है।
  • ध्वनि ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा मे परिवर्तन माइक्रोफोन द्वारा किया जाता हैं।
ध्वनि स्त्रोत तीव्रता (डेसीबल में )
साधानण बातचीत 30-40 db
तेज बातचीत 50 60 db
तेज संगीत, शोर 80 से अधिक
पेड़ के पतों की सरसराहट 10-20 db
सायरन (पुलिस, एम्बुलेंस) 110-120 db
जेट विमान 140 150 db
औद्योगिक यंत्र संयंत्र कारखाने 100- 120 db

विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल (25°C पर)

पदार्थ चाल (m/s)
एल्युमिनियम 6520
स्टील5960
लोहा 5950
जल1402
वायु332
ऑक्सीजन316
हाइड्रोजन1286
समुद्री जल 1533
सामान्य जल1493
कॉच3980




विद्युत धारा क्या है? विधुत धारा मात्रक – विमा तथा दिशा || What is electric current? Electric current unit – dimension and direction

परिभाषा: विद्युत धारा वह मात्रा है जो एक चालक के माध्यम से प्रवाहित होती है, और यह समय के साथ परिवर्तित होती है। इसे इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के रूप में भी समझा जा सकता है।
Definition: Electric current is the quantity that flows through a conductor, and it changes with time. It can also be understood as the flow of electrons.

मात्रक (Unit): विद्युत धारा का मात्रक एम्पियर (Ampere) है, जिसे संक्षेप में ‘A’ लिखा जाता है।
Unit: The unit of electric current is Ampere, which is abbreviated as ‘A’.

विमा (Dimension): विद्युत धारा की विमा है [I][I][I], और इसे निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया जा सकता है: [I]=A (Ampere)[I] = \text{A (Ampere)}[I]=A (Ampere)
Dimension: Electric current has the dimension [I][I][I], and it can be represented as follows: [I]=A (Ampere)[I] = \text{A (Ampere)}[I]=A (Ampere)

दिशा (Direction):

  • विद्युत धारा की दिशा को परंपरागत रूप से धनात्मक (positive) चार्ज के प्रवाह की दिशा में माना जाता है।
    The direction of electric current is traditionally considered to be the direction of flow of positive charge.
  • यद्यपि, वास्तविक रूप में यह इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की दिशा के विपरीत होती है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन धनात्मक चार्ज के विपरीत दिशा में प्रवाहित होते हैं।
    However, in reality it is opposite to the direction of flow of electrons, because electrons flow in the opposite direction of positive charge.

विद्युत धारा का संकेतन III होता है और इसे निम्नलिखित सूत्र से भी व्यक्त किया जा सकता है: I=QtI = \frac{Q}{t}I=tQ​ जहाँ,
Electric current is notated in III and can also be expressed by the following formula: I=QtI = \frac{Q}{t}I=tQ​ where,

  • III = विद्युत धारा (Ampere)
  • QQQ = कुल आवेश (Coulomb)
  • ttt = समय (Second)

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु (Some important points)

  • हैलोजन लैम्प का तन्तु टंगस्टन एवं सोडियम के मिश्र धातु से निर्मित होता है।
    The filament of a halogen lamp is made of an alloy of tungsten and sodium.
  • 1 किलोवाट-घंटा  3.6 × 10^6जूल के बराबर होता है
    1 kilowatt-hour is equal to 3.6 × 10^6 joules
  • जलते हुए विद्युत बल्ब के तन्तु का तापमान 1500°c से 2700°c तक हो जाता है
    The temperature of the filament of a burning electric bulb ranges from 1500°C to 2700°C
  • बिजली के बल्ब की तुलना में फलोरोसेन्ट ट्युब विद्युत ऊर्जा का प्रकाश ऊर्जा से अधिक मात्रा में परिवर्तन करती है। इसलिए बिजली के बल्ब की तुलना में फलोरेसेन्ट ट्युब का अधिक उपयोग किया जाता है।
  • फ्यूज में प्रयुक्त होने वाले तार की उच्च प्रतिरोधक शक्ति तथा निम्न गलनांक होता है।
    The wire used in the fuse has high resistance power and a low melting point.
  • स्टोरेज बैटरी को चार्ज करने हेतू दिष्ट धारा की आवश्यकता होती है।
    Storage batteries require direct current to charge.
  • डायनेमो, बिजली उत्पादन हेतु प्रयोग मे लाया जाता हैं यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
    Dynamo is used for electricity production. It converts mechanical energy into electrical energy.
  • कम वोल्टेज पर कार्य करने पर विद्युत मोटर जल जाते है, क्योकि वे अधिक विद्युत धारा खींचते है जो वोल्टेज के प्रतिलोमानुपाती होती है।
    Electric motors burn when operating at low voltage because they draw high electric current inversely proportional to the voltage.
  • टरबाइन व डायनेमों से बिजली को प्राप्त करने में ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तीत किया जाता है।
    Energy is converted from mechanical energy into electrical energy to obtain electricity from turbines and dynamos.
  • घर में सुरक्षित विद्युत सप्लाई के लिए उपयोग मंे लाये जाने वाले फ्यूज तार निम्न गलनांक वाली धातुओं से निर्मित होेते हैं।
    Fuse wires used for safe electrical supply at home are made of low melting point metals.
  • ट्रांसफॉर्मर विद्युत धारा के वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
    A transformer is used to control the voltage of the electric current.
  • प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में परिवर्तित रेक्टीफायर यंत्र करता है।
    The rectifier device converts alternating current into direct current.
  • विद्युत बल्ब के भीतर ऑर्गन गैस भरी होती है।
    Argon gas is filled inside the electric bulb.
  • सामान्य ट्यूबलाइट में ऑर्गन के साथ पारा वाष्प गैस भरी होती है।
    Normal tubelight is filled with mercury vapor gas along with argon.
  • प्रतिदीष्त बल्ब में मरकरी और निऑन गैस भरी होती है।
    Fluorescent bulb is filled with mercury and neon gas.
  • विद्युत चालकता की दृष्टि से सर्पाधिक सुचालक धातु चॉदी होता है।
    From the point of view of electrical conductivity, the best conductor of electricity is silver.
  • पृथ्वी के विभव को शून्य माना जाता है क्योकि पृथ्वी से कोई आवेश लेने या देने पर इसके विभव में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
    The potential of the earth is considered to be zero because there is no change in its potential if any charge is taken or given to the earth.
  • R प्रतिरोध वाले एक तार को पिघलाकर उसकी आधी लंबाई के तार ढाला जाता है तो तार का नया प्रतिरोध R/4 हो जाता है।
    If a wire of resistance R is melted and cast into a wire of half its length, then the new resistance of the wire becomes R/4.
  • विद्युत आवेश को भण्डारित करने के लिए संधाऱित्र उपकरण का प्रयोग किया जाता हैं
    Capacitors are used to store electrical charge
  • विभव आवेश प्रवाह की दिशा को निर्धारित करता है।
    Potential determines the direction of charge flow.
  • चालक तार के प्रतिरोध पर तापमान बढ़ाने से चालक का प्रतिरोध बढ़ता हैं
    The resistance of the conductor wire increases with increase in temperature
  • विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली युक्ति विद्युत मोटर है।
    An electric motor is a device that converts electrical energy into mechanical energy.
  • श्चेत प्रकाश को नली में तन्तु को गर्म करके उत्पन्न किया जाता है।
    White light is produced by heating the filament in the tube.
  • विद्युत चुम्बकीय प्रेरणा पर आधिरित युक्ति के दो उदाहरण डायनेमों एवं विद्युत मोटर है।
    Two examples of devices based on electromagnetic induction are dynamos and electric motors.
  • प्रत्यावर्ती धारा एवं विभवान्तर को मापने के लिए अमीटर एवं वोल्टमीटर का प्रयोग किया जाता हैं।
    Ammeter and voltmeter are used to measure alternating current and potential difference.
  • अतिचालक का प्रतिरोध लगभग शून्य होता हैं।
    The resistance of a superconductor is nearly zero.
  • तड़ित चालक बनाने के लिए ताँबा धातु का प्रयोग किया जाता हैं।
    Copper metal is used to make lightning conductors.

गुरुत्वाकर्षण क्या है इसके गुण, विषेशता, और परिभाषा || What is gravity, its properties, characteristics, and definition?

गुरुत्वाकर्षण (Gravity) एक प्राकृतिक बल है जो सभी भौतिक वस्तुओं को एक दूसरे की ओर आकर्षित करता है। यह बल वस्तुओं के द्रव्यमान और उनके बीच की दूरी पर निर्भर करता है। आइज़ैक न्यूटन द्वारा प्रस्तावित गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार, यह बल दो वस्तुओं के द्रव्यमान के गुणनफल के सीधे अनुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

गुरुत्वाकर्षण की परिभाषा:

गुरुत्वाकर्षण वह बल है जिसके द्वारा पृथ्वी, चंद्रमा, या कोई अन्य खगोलीय पिंड किसी अन्य वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह बल वस्तुओं को धरातल पर बनाए रखता है और हमारे ब्रह्मांड में विभिन्न खगोलीय पिंडों की कक्षाओं को निर्धारित करता है।

गुण और विशेषताएँ:

  1. सार्वत्रिकता: गुरुत्वाकर्षण बल सार्वत्रिक होता है, यानी यह सभी वस्तुओं के बीच विद्यमान रहता है, चाहे वे कितनी भी दूर क्यों न हों।
  2. बल का परिमाण: किसी वस्तु के द्रव्यमान और उसकी दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
  3. दूरी पर निर्भरता: यह बल वस्तुओं के बीच की दूरी बढ़ने पर तेजी से कम होता है।
  4. नियमितता: यह बल हमेशा आकर्षण की दिशा में कार्य करता है, यानी वस्तुओं को एक दूसरे की ओर खींचता है।
  5. अंतर्क्रिया: गुरुत्वाकर्षण बल वस्तुओं के बीच अंतर्क्रिया करता है और इन वस्तुओं की गति और दिशा को प्रभावित करता है।
  6. रेंज: इसका प्रभाव बहुत दूर तक होता है, लेकिन यह दूरी बढ़ने के साथ कमज़ोर हो जाता है।

गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव:

  1. पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण: यह बल पृथ्वी पर सभी वस्तुओं को नीचे की ओर खींचता है, जिससे वे धरातल पर रहती हैं।
  2. खगोलीय पिंडों की गति: गुरुत्वाकर्षण बल सूर्य, ग्रह, चंद्रमा, और अन्य खगोलीय पिंडों की गति और कक्षाओं को नियंत्रित करता है।
  3. समुद्र की लहरें: चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति समुद्र की लहरों और ज्वार-भाटाओं को प्रभावित करती है।

गुरुत्वाकर्षण के नियमों को समझने से हम ब्रह्मांड के विभिन्न पहलुओं, जैसे ग्रहों की गति, कृत्रिम उपग्रहों की कक्षा, और भौतिक विज्ञान के अन्य कई सिद्धांतों को समझ सकते हैं।

गुरुत्वाकर्षण के प्रकार –

गुरुत्वाकर्षण (Gravity) का केवल एक प्रकार होता है, लेकिन इसे समझने के और इसके विभिन्न संदर्भों में उपयोग करने के विभिन्न तरीके हैं। यहाँ कुछ प्रमुख रूप हैं जिनमें गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है:

1. पारंपरिक न्यूटनियन गुरुत्वाकर्षण:

यह आइज़ैक न्यूटन द्वारा प्रस्तावित गुरुत्वाकर्षण का पारंपरिक सिद्धांत है। इसके अनुसार, दो वस्तुओं के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल उनके द्रव्यमान के गुणनफल के सीधे अनुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

2. सापेक्षतावादी गुरुत्वाकर्षण (Einstein’s General Relativity):

अल्बर्ट आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार, गुरुत्वाकर्षण बल वास्तव में द्रव्यमान द्वारा अंतरिक्ष-समय के वक्रण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। यह सिद्धांत अधिक सटीक है और अत्यधिक द्रव्यमान या उच्च गुरुत्वीय क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होता है।

3. क्वांटम गुरुत्वाकर्षण (Quantum Gravity):

यह एक सैद्धांतिक फ्रेमवर्क है जो क्वांटम यांत्रिकी और सापेक्षता के सिद्धांतों को मिलाने का प्रयास करता है। इसका उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण को क्वांटम स्तर पर समझना है। इसके अंतर्गत स्ट्रिंग थ्योरी और लूप क्वांटम ग्रेविटी जैसी कई सैद्धांतिक दृष्टिकोण शामिल हैं।

4. सतही गुरुत्वाकर्षण (Surface Gravity):

यह किसी खगोलीय पिंड की सतह पर अनुभूत गुरुत्वाकर्षण बल को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिए, पृथ्वी की सतही गुरुत्वाकर्षण 9.8 मीटर/सेकंड² है।

5. सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (Microgravity):

यह एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जहां गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अत्यंत कम होता है, जैसे अंतरिक्ष में। इसे कभी-कभी “शून्य गुरुत्वाकर्षण” भी कहा जाता है।

6. सुदूर गुरुत्वाकर्षण (Tidal Gravity):

यह गुरुत्वाकर्षण का वह प्रभाव है जो एक पिंड के विभिन्न भागों पर अलग-अलग बल लगाता है, जिससे पिंड में ज्वारीय बल उत्पन्न होते हैं। यह प्रभाव मुख्यतः पृथ्वी और चंद्रमा के बीच देखा जाता है।

इन विभिन्न संदर्भों और सिद्धांतों के माध्यम से, गुरुत्वाकर्षण का व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है और इसे कई अलग-अलग दृष्टिकोणों से समझने की कोशिश की जाती है।

गुरुत्वाकर्षण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:

  • पृथ्वी पर पलायन वेग 11.2 किमी/सेकेण्ड
  • यदि चक्कर लगाते हुये अंतरिक्षयान से एक सेब छोड़ा जाए तो उसकी गति अंतरिक्षयान के साथ-साथ उसी गति से गतिमान होगा।
  • अन्तरिक्ष यात्री निर्वात में गुरूत्वाकर्षण की अनुपस्थिति के कारण खड़े नहीं रह सकते।
  • पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा कर रहा कृत्रिम उपग्रह गुरुत्वाकर्षण के विरुद्व अपकेन्द्रीय बल के प्रभाव के कारण नहीं गिरता है।
  • एक भू-उपग्रह अपकेन्द्रीय बल के प्रभाव से अपने कक्ष में निरन्तर गति करता है।
  • चन्द्रमा की सतह पर पलायन वेग पृथ्वी की सतह की अपेक्षा चन्द्रमा की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या से कम होता है।
  • भारहीनता की स्थिति गुरूत्वाकर्षण की शून्य स्थिति के कारण होता है।
  • एक लड़की झूले पर बैठी स्थिति में झूल रही है उस लड़की के खड़े हो जाने पर आवर्तकाल कम हो जाएगा।
  • लोलक की लम्बाई बढ़ जाने के कारण लोलक घडी गर्मियो में धीमी हो जाती है जबकि शीतकाल में तीव्र गति से चलने लगती है।
  • हवा में लोहे और लकड़ी की समान भार की गेंद को एक समान ऊँचाई से गिराने पर लकड़ी की गेंद बाद में गिरेगी।
  • लकड़ी का घनत्व लोहे की अपेक्षा कम होता है जिस कारण यदि लोहे व लकड़ी की समान भार की गेंदों को समान ऊँचाई से गिराया जाए तो लकड़ी की गेंद पर वायु का प्रतिरोध अधिक होगा।
  • पृथ्वी के धुवों पर पिण्ड का भार सर्वाधिक होता है।
  • पृथ्वी के केन्द्र से ध्रुवों की दूरी कम होने के कारण ध्रुवों पर स्थित पिण्ड पर पृथ्वी द्वारा अधिक गुरुत्वीय आकर्षक बल आरोपित होगा, इसलिए ध्रुव पर उसका भार पृथ्वी पर स्थित किसी अन्य स्थान से अधिक होगा।
  • लिफट में बैठे हुए व्यक्ति का भार जब लिफट त्वरित गति से ऊपर जा रही है तो भार कम महसूस होता है।
  • भू-तुल्यकाली उपग्रह के परिक्रमण की अवधि 24 घंटे कि होती है।
  • यदि पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी दोगुनी होती, तो सूर्य द्वारा पृथ्वी पर गुरूत्वाकर्षण बल वर्तमान का 1/4 भाग होता है।
  • लोलक की समयावधि लोलक की लम्बाई पर निर्भर करती है।
  • पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल यदि अचानक लुप्त हो जाए तो इसका परिणाम पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं का भारत शुन्य हो जाएगा लेकिन द्रव्यमान अपरिपर्तित रहेगा।
  • पृथ्वी की सतह पर ह का मान अधिकतम तथा चन्द्रमा पर ह का मान पृथ्वी के गुरूत्वीय त्वरण का 1/6 होता है।
  • पीसा की झुकी हुई मीनार गुरूत्व केन्द्र से जाने वाली उर्घ्वाधर रेखा तल के अन्दर रहने के कारण गिरती नहीं है।
  • यदि कोई वस्तु ऊपर से गिराई जाती है तो उसके भार अपरिवर्तित रहेगा।
  • जब हम भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते है तो ह का मान बढ़ता है।
  • चक्रिय झूले पर झूलते समय व्यक्ति को बाहर की ओर धक्का अपकेन्द्रीय बल के कारण महसूस होता है।
  • विभिन्न द्रव्यमान वाले दो पत्थर एक साथ किसी इमारत की छत से गिराए जाते है तो दोनोे पत्थर एक साथ जमीन पर पहुँचेगं।

गुरूत्वाकर्षण एवं गुरूत्व के उदाहरण –

  • सूर्य एवं अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षक के कारण ही सभी ग्रह लगभग वृताकार एवं निश्चित कक्षओं में सूर्य की परिक्रमा करते है।
  • पृथ्वी के गुरूत्व एवं चन्द्रमा के गुरूत्वाकर्षण के कारण ही चन्द्रमा एक निश्चित कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
  • सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण की अंतर्क्रिया के कारण पृथ्वी पर स्थित समुदों में ज्वार-भाटा आते है।

Basic of Physics (Fundamental Units)


विज्ञान (Science): साईंस शब्द की उत्पति लैटिन शब्द सिंटिया से हुई है, जिसका अर्थ है ज्ञान या जानना अर्थात् हमारे इस भौतिक जगत में जो कुछ भी घटित हो रहा है, उसका क्रमबद्ध या, व्यवस्थित ज्ञा नही ‘विज्ञान’ कहलाता है।

विज्ञान की दो मुख्य शाखएं हैं- प्राकृतिक विज्ञान(Natural Science) तथा भौतिकीय विज्ञान Physical Science) प्राकृतिक विज्ञान के दो मुख्य भाग हैं- वनस्पति विज्ञान (Botany) तथा जन्तु विज्ञान (Zoology) । भौतिकीय विज्ञान के भी दो मुख्य भाग हैं- भौतिकी (Physics) तथा रसायन विज्ञान (Chemistry) ।

भौतिकी: भौतिकी, विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत द्रव्य तथा उर्जा और उनकी परस्पर क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

अध्ययन की सुविधा के लिए भौतिकी को आठ भागों में बांटा जाता है-

1 यांत्रिकी (Mechanics)
2 ध्वनि (Sound)
3 ऊष्मा (Heat)
4 प्रकाश (Light)
5 विद्युत् Electricity)
6 चुम्बकत्व (megnetism)
7 आधुनिक एवं परमाणु भौतिकी (Modern and Atomic Physics)
8 इलेक्ट्रॉनिकी (Electronics)

यांत्रिकी

मापन

राशि (Quantity)- जिसे संख्या के रूप् में प्रकट किया जा सके, उसे राशि कहते है। जैसे – जनसंख्या, आयु वस्तु का भार, मेज की लम्बाई आदि।

भौतिक राशियां (Physical Quantities)- भौतिकी के नियमों को जिन्हें राशियों के पदों में व्यक्त किया जाता है, उन्हें भौतिक राशियां कहते है- जैसे – वस्तु का द्रव्यमान, लम्बाई, बल, चाल, दुरी, विद्युत् धारा, घनत्व आदि।

भौतिक राशियां दो प्रकार की होती हैं- अदिश और सदिश।

  • अदिश- वैसी भातिक राशियां जिनमें केवल परिणाम होता है, दिशा नहीं होती, उन्हें अदिश कहा जाता है जैसे – द्रव्यमान, घनत्व, तापमान, विद्युत् धारा, समय, चाल, आयतन, कार्य आदि।
  • सदिश – वैसी भौतिक राशियां, जिनमें परिमाण के साथ-साथ दिशाएं भी होती हैं और जो योग के निश्चित नियमों के अनुसार जोड़ी जाती हैं, उन्हें सदिश कहा जाता है जैसे वेग, विस्थापन, बल, रेखीय, संवेग, कोणीय जोडी कोणीय वेग, त्वरण बल आघूण, चुम्बकीय क्षेत्र प्रेरण, चुम्बकीय क्षेत्र तीव्रता, चुम्बकीय आघूर्ण विद्युत् तीव्रता, विद्युत् धारा घनत्व, विद्युत् ध्रुव आघूर्ण, विद्युत् धु्रवण, चाल प्रवणता, ताप प्रवणता आदि।
  • माप के मात्रक या इकाई (Units of measurement) – किसी राशि के मापन के निर्देश मानक को मात्रक कहते हैं अर्थात् किसी भी राशि की माप करने के लिय उसी राशि के एक निश्चित परिमाण को मानक मान लिया जाता है और उसे कोई नाम दे दिया जाता है। इसी को उस राशि का मात्रक कहते है । किसी दी हुई राशि की उसके मात्रक से तुलना करने की क्रिया का मापन कहते है।
  • मात्रक दो प्रकार होते हैं- मूल मात्रक व्युत्पन्न मात्रक।
  • मूल मात्रक या इकाई – किसी भौतिक राशि को व्यक्त करने के लिए कुछ ऐसे मानको ं का प्रयोग किया जाता है, जो अन्य मानको से स्वतंत्र होते है, इन्हें मूल मात्रक कहते है जैसे लम्बाई, समय और द्रव्यमान के मात्रक क्रमश मीटर, सेकेण्ड एवं किलोग्राम मूल इकाई है।
  • व्युत्पन्न मात्रक या इकाई – किसी भौतिक राशि को जब दो या दो से अधिक मूल इकाइयों में व्यक्त किया जाता है, तो उसे व्युत्पन्न इकाई कहते है जैसे बल, दाब, कार्य या विभव के लिए क्रमश न्यूटन, पास्कल, जूल, एवं वोल्ट व्युत्पन्न मात्रक है।

मात्रक पद्धतियां (System of Units)- भौतिक राशियों के मापन के लिए निन्नलिखित चार पद्धतियां प्रचलित है-

CGS पद्धति (Centimetre Gram Second System) – इस पद्धति में लम्बाई, द्रव्यमान तथा समय के मात्रक क्रमशः सेंटीमीटर, ग्राम, और सेकण्ड होते है। इसलिए इसे Centimetre Gram Second or CGS पद्धति कहते है। इसे फेंच या मीट्रिक पद्धति भी कहते है।

FPS पद्धति : (Foot Pound, Second System): इस पद्धति मे लम्बाई, द्रव्यमान तथ समय के मात्रक क्रमशं फुट, पाउण्ड, और सेकण्ड होते है। इसे ब्रिटिश पद्धति भी कहते हैं।

MKS पद्धति :(Meter Kilogram Second System) इस पद्धति में लम्बाई, द्रव्यमान और समय के मात्रक क्रमश: मीटर, किलोग्राम और सेकण्ड होते है।

अन्तर्राष्ट्रीय मात्रक पद्धति :(System International: S.I Units): 1960 ई॰ में अन्तर्राष्ट्रीय माप-तौल के अधिवेशन में SI को स्वीकार किया गया जिसका पूरा नाम de Systeme International d’ Units है। वास्तव में, यह प्रद्धति MKS प्रद्धति का ही संशोधित एवं परिवर्द्धित रूप है। आजकल इसी पद्धति का प्रयोग किया जाता है। इस पद्धति में सात मूल मात्रक तथा दो सम्पूरक मात्रक हैं।

SI Unit के सात मूल मात्रक निम्न्लिखित है-

1 लम्बाई (Lenght): का मूल मात्रक मीटर ;(Metre): SI में लम्बाई का मूल मात्रक मीटर (Metre) है। 1 मीटर वह दूरी है जिसे प्रकाश निर्वात् में 1/299792458 सेकण्ड में तय करता है।

2 द्रव्यमान(Mass) द्रव्यमान का मूल मात्रक किलोग्राम (Kilogram): फ्रांस के सेवरिस नामक स्थान पर माप-तौल के अन्तर्राष्ट्रीय माप तौल ब्यूरो (International Bureau of Weight and Measurement- IBWM) में सुरक्षित रखे प्लेटिनम.इरीडियम मिश्रधातु के बने हुए बेलन के द्रव्यमान को मानक किलोग्राम कहते हैं। इसे संकेत में कि किलोग्राम (kg) लिखते हैं।

3 समय (Time) का मूल मात्रक सेकण्ड (Second) : सीजियम.133 परमाणु की मूल अवस्था के दो निश्चित ऊर्जा स्तरों (Hyperfine levels) के बीच संक्रमण ((Transition) से उत्पन्न विकिरण के 9192631770 आवर्तकालों की अवधि को 1 सेकण्ड कहते हैं। आइंस्टीन ने अपने प्रसिद्ध श्सापेक्षता का सिद्धांतश्(Theory of Relativity) में समय को चतुर्थ विमा (Fourth Dimension) के रूप में प्रयुक्त किया है।

4.विद्युत प्रवाह (Electric Current) का मूल मात्रक एम्पेयर(Ampere) : यदि दो लम्बे और पतले तारों को निर्वात् में 1 मीटर की दूरी पर एक.दूसरे के समानान्तर रखा जाए और उनमें ऐसे परिमाण की समान विद्युत् धारा प्रवाहित की जाए जिससे तारों के बीच प्रति मीटर लम्बाई में 2 × 10.7 न्यूटन का बल लगने लगे तो विद्युत् धारा के उस परिमाण को 1 ऐम्पियर कहा जाता है। इसका प्रतीक A है।

5 ताप (Temperature) का मूल मात्रक केल्विन (Kelvin): जल के त्रिक बिन्दु(Triple point) के ऊष्मागतिक ताप के 1/273.16 वें भाग को केल्विन कहते हैं। इसका प्रतीक K होता है।

6 ज्योति.तीव्रता(Luminous Intensity) का मूल मात्रक कैन्डेला (Candela) : किसी निश्चित दिशा में किसी प्रकाश स्रोत की ज्योति तीव्रता 1 कैण्डेला तब कही जाती है जब यह स्रोत उस दिशा में 540 × 1012 हर्ट्ज का तथा 1/683 वाट / स्टेरेडियन तीव्रता का एकवर्षीय(monochromatic) प्रकाश उत्सर्जित करता है।

यदि घन कोण के अन्दर प्रति सेकण्ड 1 जूल प्रकाश ऊर्जा उत्सर्जित हो तो उसे 1 वाट / स्टेरेडियन कहते हैं।

7 पदार्थ की मात्रा(Amount of Substance) का मूल मात्रक मोल (Mole) : एक मोल पदार्थ की वह मात्रा है जिसमें उसके अवयवी तत्वों (परमाणु अणु,….. आदि) की संख्या 6.023 × 10^23 होती है। इस संख्या को ऐवोगाड्रो नियतांक (Avogadro’s Constant) कहते हैं।

नोट :- मोल पदार्थ के परिमाण का मात्रक है यह द्रव्यमान का मात्रक नहीं है।

SI के दो सम्पूरक मात्रक(Supplementary Units) हैं 1. रेडियन 2. स्टेरेडियन

  • रेडियन (Radian) : किसी वृत्त की त्रिज्या के बराबर लम्बाई के चाप द्वारा उसके केन्द्र पर बनाया गया कोण एक रेडियन होता है। इस मात्रक का प्रयोग समतल पर बने कोणों (Plane angle) को मापने के लिए किया जाता है।
  • स्टेरेडियन (Steradian) किसी गोले की सतह पर उसकी त्रिज्या के बराबर भुजा वाले वर्गाकार क्षेत्रफल द्वारा गोले के केन्द्र पर बनाए गए घन कोण को 1 स्टेरेडियन कहते हैं। यह ठोसीय कोणों(Solid angles) को मापने का मात्रक है।