बंगाल विभाजन (1905) भारत के आधुनिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसका प्रभाव स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा पड़ा। इसका निर्णय तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्ज़न (Lord Curzon) ने लिया था। आइए इसे विस्तार से समझते हैं: बंगाल विभाजन: इतिहास, कारण, भूमिका || Bengal Partition: History, Causes, Role
1905 से पहले बंगाल प्रेसीडेंसी भारत का सबसे बड़ा प्रांत था, जिसमें वर्तमान बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम और बांग्लादेश का हिस्सा शामिल था।
इसमें लगभग 8 करोड़ की जनसंख्या थी, और प्रशासनिक दृष्टि से इसे चलाना ब्रिटिश सरकार के लिए कठिन होता जा रहा था (यह एक बहाना था)।
⚖️ विभाजन के कारण:
1. प्रशासनिक कारण (सरकारी तर्क):
लॉर्ड कर्ज़न का कहना था कि इतने बड़े और जनसंख्या वाले प्रांत को कुशलता से चलाना मुश्किल है, इसलिए विभाजन ज़रूरी है।
2. राजनीतिक कारण (वास्तविक कारण):
बंगाल उस समय भारतीय राष्ट्रवाद का गढ़ बन चुका था।
कांग्रेस और नवजागरण आंदोलन में बंगालियों की भूमिका अग्रणी थी।
अंग्रेजों ने “फूट डालो और राज करो” नीति अपनाई।
विभाजन से हिंदू और मुस्लिमों के बीच दरार पैदा करने का प्रयास किया गया।
3. धार्मिक आधार पर विभाजन:
बंगाल को दो हिस्सों में बाँटा गया:
पूर्वी बंगाल और असम (मुस्लिम बहुल)
पश्चिमी बंगाल (हिंदू बहुल)
इससे धार्मिक तनाव पैदा हुआ।
🎭 भूमिका और प्रभाव:
1. स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत:
लोगों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया।
स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और प्रचार हुआ।
भारतीय उद्योगों को बढ़ावा मिला।
2. राष्ट्रवादी भावनाओं को बल:
बंगाल के लोगों में एकता बढ़ी।
कई कवियों, लेखकों और बुद्धिजीवियों ने आंदोलन का समर्थन किया (जैसे रवींद्रनाथ टैगोर)।
3. राजनीतिक जागरूकता:
युवा वर्ग आंदोलनों में शामिल होने लगा।
चरमपंथी राष्ट्रवाद को बल मिला।
4. बंगाल विभाजन का रद्द होना:
भारी विरोध और जन आंदोलन के चलते 1911 में विभाजन को रद्द कर दिया गया।
भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया गया।
बंगाल विभाजन 1905
पक्ष
पश्चिम बंगाल
पूर्वी बंगाल
समाविष्ट क्षेत्र
बंगाल, बिहार, उड़ीसा
पूर्वी बंगाल, असम
जनसंख्या का आधार
हिंदू जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्र
मुस्लिम जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्र
राजनीतिक स्थिति
राष्ट्रवादी आंदोलन का केंद्र
comparatively शांत क्षेत्र
ब्रिटिश उद्देश्य
हिंदू और मुस्लिमों में फूट डालना
मुस्लिमों को राजनीतिक रूप से अलग करना
प्रतिक्रिया
तीव्र विरोध, स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत
अपेक्षाकृत कम विरोध
विभाजन की तिथि
–
16 अक्टूबर 1905
✅ बंगाल विभाजन – महत्वपूर्ण बिंदु
बंगाल का विभाजन लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल में हुआ था।
बंगाल विभाजन की घोषणा 16 अक्टूबर,1905 को प्रभावी हुई।
20 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा हुई, जिसके विरोध में 7 अगस्त, 1905 को कलकता के टाउन हाल में स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ हुआ। इसी बैठक में ऐतिहासिक बहिष्कार प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था।
बंगाल का विभाजन मुख्यत बंगाली राष्ट्रवाद की भावना को दुर्बल करने के उदेश्य से किया गया था।
वन्दे मातरम् स्वदेशी आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रेरक गीत बना है।
बंगाल के विभाजन के विरोध में हुए आंदोलन का नेतृत्व सुरेंद्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व मे किया गया था।
दिल्ली में स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व सैयद हैदर रजा के नेतृत्व में किया गया था।
मद्रास में स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व चिदम्बरम् पिल्लै ने किया था।
ब्रिटिश वस्तुओ के बहिष्कार को राष्ट्रीय नीति के रूप में वर्ष 1905 में स्वीकृत किया गया था।
ब्रिटिश पत्रकार एच डब्ल्यू नेवन्सिन ने स्वदेशी आंदोलन से जुडे थे।
16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल में शोक दिवस मनाया गया । रवीन्द्रनाथ टैगोर के सुझाव पर सम्पूर्ण बंगाल में इस दिन को राखी दिवस के रूप में मनाया गया।
वर्ष 1905 में बांग्ला पत्रिका संजीवनी के सम्पादक कृष्ण कुमार मित्र ने किया था।
अरूण्डेल समिति के सुझाव पर वर्ष 1911 में बंगाल का पुन एकीकरण कर दिया तथा दिल्ली, भारत की राजधानी बनायी गयी।
वर्ष 1905 के स्वदेशी आंदोलन को कृषक तथा मुसलामान वर्ग का विशेष समर्थन प्राप्त नहीं हुआ।
भारत की प्राचीन कला परम्पराओं को पुनर्जीवित करने के लिए एक इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट की स्थापना अवनींद्रनाथ टैगोर ने किया था।
स्वदेशी आंदोलन के प्रारम्भ का तात्कालिक कारण लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन करना था।
बंगाल में ब्रिटेन की वस्तुओ के बहिष्कार का सुझाव सर्वप्रथम कृष्ण कुमार मित्र ने दिया था।
स्वदेशी बांधव समिति की स्थापना अश्विनी कुमार दत ने किया था।
स्वदेशी आन्दोलन के दौरान रवीन्द्र नाथ टैगोर ने आमर-सोनार बांग्ला नामक गीत की रचना की, जो आगे चलकर वर्ष 1971 में बांग्लादेश का राष्ट्रगान बना।
वर्ष 1905 में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन मे स्वदेशी आन्दोलन का समर्थन किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले ने की थी।
स्वदेशी आन्दोलन के दौरान बंगाल कैमिकल्स स्वदेशी स्टोर्स की स्थापना प्रफुल्ल चन्द्र रॉय के द्वारा की गयी।
लॉर्ड कर्जन द्वारा वर्ष 1905 में किया गया बंगाल विभाजन, वर्ष 1911 में लॉर्ड हॉर्डिंग के कार्यकाल में रद कर दिया गया।
स्वदेशी आंदोलन का आलोचन तथा पूर्व व पाष्चात्य के मध्य एक बेहतर सम्बंध रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किया था।
बंगाल विभजन के समय बंगाल का लेफिटनेंट गवर्नर सर एन्उूज फेजर था।
स्वदेशी आन्दोलन के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयोग की गई द बंगाली पत्रिका के सम्पादक सुरेन्द्र नाथ बनर्जी के द्वारा किया गया था।
बंगाल में ब्रिटेन की वस्तुओं के बहिष्कार का सुझाव सर्वप्रथम कृष्ण कुमार मित्र ने किया था।