प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला खजुराहो नृत्य महोत्सव एक बार फिर 20 से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित किया गया है। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग और पर्यअन विभाग द्वारा आयोजित यह महोत्सव 1975 से भारतीय शास्त्रीय नृत्य की समृद्ध परंपरा को संजोते हुए नूतन प्रयोगें को भी प्रोत्साहित कर रहा है। (51वां खजुराहो नृत्य महोत्सव: 2025 || 51st Khajuraho Dance Festival: 2025)
यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल खजूराहो के मंदिरों, की पृष्ठभूमि में आयोजित यह उत्सव अपनी 51वीं वर्षगांठ पर रिकॉर्ड तोड़ नृत्य प्रस्तुतियों, विरासत पर्यटन, शिल्प मेले, पारंपरिक व्यंजन, रोमांचकारी गतिविधियों और कई अन्य कार्यक्रमों के साथ एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करेगा।

खजुराहो नृत्य महोत्सव का इतिहास
खजुराहो नृत्य महोत्सव भारत का एक प्रतिष्ठित शास्त्रीय नृत्य महोत्सव है, जिसे प्रतिवर्ष मध्य प्रदेश के खजुराहो में आयोजित किया जाता है। इसकी शुरुआत 1975 में मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग और उज्जैन स्थित उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा की गई थी।
महोत्सव की खासियतें
- यह महोत्सव खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों की पृष्ठभूमि में आयोजित किया जाता है, जो चंदेल वंश के दौरान (10वीं-12वीं शताब्दी) बनाए गए थे।
- इसका मुख्य उद्देश्य भारत की शास्त्रीय नृत्य परंपराओं को बढ़ावा देना और उनका संरक्षण करना है।
- इसमें भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुड़ी, ओडिसी, मणिपुरी, मोहिनीअट्टम और कथकली जैसे प्रमुख शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में इसमें लोकनृत्य और समकालीन नृत्य को भी शामिल किया गया है।
महत्वपूर्ण पहलू
- यह महोत्सव हर साल फरवरी माह में आयोजित किया जाता है और एक सप्ताह तक चलता है।
- इसे संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा समर्थित किया जाता है।
- प्रसिद्ध भारतीय और अंतरराष्ट्रीय नृत्य कलाकार इस मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
खजुराहो का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
खजुराहो को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह स्थान अपनी कामसूत्र प्रेरित मूर्तिकला, मंदिर वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है।
खजुराहो नृत्य महोत्सव भारतीय कला, संस्कृति और परंपरा का उत्सव है, जो प्राचीनता और आधुनिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
खजुराहो नृत्य: कला और संस्कृति का संगम
खजुराहो नृत्य मुख्य रूप से खजुराहो नृत्य महोत्सव से जुड़ा हुआ है, जो भारत के प्राचीन शास्त्रीय नृत्यों को समर्पित एक प्रमुख उत्सव है। यह नृत्य शैली किसी विशेष नृत्य का नाम नहीं है, बल्कि यह भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों का एक मंच है, जहां विभिन्न नृत्य कलाकार अपनी प्रस्तुतियाँ देते हैं।
खजुराहो और नृत्य का संबंध
- खजुराहो के मंदिरों में उकेरी गई मूर्तियाँ नृत्य की विभिन्न मुद्राओं (नटराज मुद्रा, त्रिभंगी मुद्रा आदि) को दर्शाती हैं।
- इन मंदिरों की दीवारों पर शृंगारिक और आध्यात्मिक भावनाओं को व्यक्त करने वाली नृत्य की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।
- खजुराहो के मंदिरों में बनी नृत्यांगनाओं की प्रतिमाएँ भारतीय नृत्य परंपरा की प्राचीनता और समृद्धि को दर्शाती हैं।
खजुराहो नृत्य महोत्सव में प्रस्तुत नृत्य शैलियाँ
- कथक – उत्तर भारत की यह नृत्य शैली भाव-भंगिमा और तत्कार के लिए प्रसिद्ध है।
- भरतनाट्यम – यह दक्षिण भारत की सबसे पुरानी नृत्य शैली मानी जाती है, जिसमें भक्ति रस देखने को मिलता है।
- ओडिसी – ओडिशा की यह नृत्य शैली मंदिरों में की जाने वाली मूर्तिकला की झलक देती है।
- कुचिपुड़ी – यह आंध्र प्रदेश की नृत्य शैली नाट्य परंपरा से जुड़ी हुई है।
- मोहिनीअट्टम – केरल की यह नृत्य शैली कोमल मुद्राओं और मोहक अभिनय के लिए प्रसिद्ध है।
- कथकली – इसमें रंग-बिरंगे परिधान और मुखाभिनय विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं।
- मणिपुरी – मणिपुर राज्य का यह नृत्य राधा-कृष्ण भक्ति पर आधारित होता है।
खजुराहो नृत्य और भारतीय संस्कृति
- खजुराहो की नृत्य परंपरा भारतीय संस्कृति और इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
- इस नृत्य महोत्सव का आयोजन भारतीय शास्त्रीय नृत्य को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।
- खजुराहो के मंदिरों में उकेरी गई नृत्य आकृतियाँ भारतीय नृत्य शास्त्र (नाट्यशास्त्र और अभिनय दर्पण) का मूर्त रूप हैं।
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