हुमायूँ का जीवन परिचय-


हूमायूँ के पिता का नाम बाबर था। हूमायूँ का पूरा नाम नसिरुद्दीन मुहम्मद तथा उपनाम हुमायूँ था। अपने सभी पूत्रों मे बाबर हुमायूँ को अधिक चाहता था किंतु व्यस्त जीवन के कारण उसकी शिक्षा, दीक्षा की तरफ ध्यान नहीं दे सका । फिर भी 1514 ई में काबुल से लौटने के बाद बाबर ने हुमायूँ की शिक्षा की व्यवस्था की । उसने मौलाना इलियास को हुमायूँ के शिक्षक के रूप में नियुक्त किया।



जन्म – 6 मार्च, 1508 ई.
जन्म स्थान – काबुल
मूल नाम – नासिरुद्दीन मुहमद
उपनाम – हुमायूँ
माता – माहम बेगम
पिता – बाबर
राज्याभिषेक – 30 दिसम्बर, 1530 ई.

  • गद्दी पर बैठने से पहले हुमायूँ बदख्याँ का सूबेदार था।
  • अपने पिता के निर्देश के अनुसार हुमायूँ ने अपने राज्य का बॅटवारा अपने भाईयों में कर दिया । इसने कामान को काबूल और कंधार, मिर्जा असकरी को सँभल, मिर्जा हिंदाल को अलवर व मेवाड की जागीरें दी। अपने भाई सुलेमान मिर्जा को हुमायूँ ने बदख्शाँ प्रदेश दिया।
  • 1533 ई में हुमायूँ ने दीनपनाह नामक नए नगर की स्थापना की थी।

हुमायूँ द्वारा लड़े गये कुछ प्रमुख युद्ध


सिंहासन पर बैठने के कुछ ही माह पश्चातृ हुमायूँ को संघर्ष मे फंसना पड़ा । उसके मुख्य शत्रु अफगान थे। अतः उन्हीं से उसका संधर्ष आरम्भ हुआ। कांलिंजर पर आक्रमण अफगान संघर्ष की एक कड़ी थी।


कालिंजर पर आक्रमण
तिथि – 1531 ई.
पक्ष – हुमायूँ व प्रतापरुद्र
परिणाम – संधि वार्ता सम्पन्न
हुमायूँ का पहला सैनिक अभियान बुन्देलखण्ड में स्थित कालिंजर के विरुद्ध था।


दोहरिया का युद्ध 1532 ई.
तिथि – 1532 ई.
पक्ष – हुमायूँ व महमूद लोदी
परिणाम – हुमायूँ विजयी
दोहरियाका युद्ध हुमायूँ के राजत्व काल में अफगानों से पहला मुकाबला था।


बहाूदर शाह से संघर्ष 1535-36 ई.
तिथि – 1535-36 ई.
पक्ष – बहादूरशाह व हुमायूँ
परिणाम – हुमायूँ विजयी


शेर खाँ से संघर्ष 1537 – 40 ई.
शेरखां हुमायूँ का प्रबलतम शत्रु था। वह एक योग्य और महत्वकांक्षी व्यक्ति था । चालाक अफन बताकर बाबर ने हुमायूँ को शेर खां के प्रति सचेत किया था।


चौसा का युद्ध 26 जून 1539 ई.
तिथि – 26 जून, 1539 ई.
पक्ष – हुमायूँ व शेर खां
परिणाम – शेरखां विजयी


कन्नौज अथवा बिलग्राम का युद्ध
तिथि – 17 मई, 1540 ई.
पक्ष – शेर शाह व हुमायूँ
परिणाम – शेरशाह विजयी

बिलग्राम युद्ध के बाद हुमायूँ सिन्ध चला गया। जहां उसने 15 वषों तक धुमक्कडों जैसा निर्वासित जीवन व्यतीत किया।
निर्वासन के समय हुामयूँ ने हिन्दाल के अध्यात्मिक गुरु फारसवाई शिया मीर बाबा दोस्त उर्फ मी अली अकबर जामी की पुत्री हमीदा बानू बेगम से 29 अगस्त, 1541 ई को निकाह कर लिया
कालान्तर में हमीदा से ही अकबर जैसे महान सम्राट् का जन्म हुआ


मच्छीवाडा का युद्ध 15 मई, 1555 ई.
तिथि – 15 मई 1555ई.
पक्ष – हुमायूँ व अफगानो के बीच
परिणाम – हुमायूँ विजयी हुआ

सरहिन्द का युद्ध 22 जून, 1555 ई.
तिथि – 22 जून, 1555 ई.
पक्ष – हुमायूँ व सिन्दर सूर के बीच
परिणाम – हुमायूँ विजयी हुआ ।

  • हुमायूँनामा की रचना गुल-बदन-बेगम ने की थी।
  • हुमायूँ ज्योतिष मं विश्वास करता था, इसलिए इसने सप्ताह के सातों दिन सात रंग के कपडे़ पहनने के नियम बनाए।
  • 1 जनवरी, 1556ई. को दीन पनाह भवन से स्थित पुस्तकालय (शेर मंडल) की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुमायूँ की मृत्यु हो गई ।
  • हुमायूँ के बारे में इतिहसाकार लेनपूल ने कहा है कि ‘‘ हुमायूँ गिरते -पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया ठीक उसी तरह जिस तरह तमाम जिन्दगी वह गिरते-पडते चलत रहा था।उनकी मृत्यु 27 जनवरी 1556 को हुई। उनका शासनकाल 1530 से 1540 तक और फिर 1555 से 1556 तक चला।

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