प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह घोषणा 22 मार्च 2025 को हुई, जिसमें उनके साहित्यिक योगदान को मान्यता दी गई। 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार 2025 || 59th Jnanpith Award 2025
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उन्होंने ‘नौकर की कमीज़’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ जैसे उपन्यासों के माध्यम से हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी कविताएं, जैसे ‘वह आदमी चला गया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’, भी पाठकों के बीच विशेष रूप से सराही गई हैं।
यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले वे हिंदी के 12वें लेखक हैं, और छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है।
विनोद कुमार शुक्ल प्रमुख कृतियाँ – दीवार में एक खिड़की रहती थी”, “नौकर की कमीज”, “सब कुछ होना बचा रहेगा

ज्ञानपीठ पुरस्कार: इतिहास और महत्वपूर्ण जानकारी
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है, जो प्रतिवर्ष किसी एक या अधिक भारतीय लेखकों को उनके उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार भारतीय भाषाओं में लिखे गए साहित्य को प्रोत्साहित करने और मान्यता देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
स्थापना और इतिहास
- स्थापना वर्ष: 1961
- प्रदान करने वाली संस्था: भारतीय ज्ञानपीठ (Bharatiya Jnanpith)
- प्रथम पुरस्कार: 1965 में मलयालम लेखक जी. शंकर कुरुप को प्रदान किया गया।
- पात्रता: यह पुरस्कार भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किसी भी भाषा के साहित्यकारों को दिया जाता है।
पुरस्कार स्वरूप
- विजेता को ₹11 लाख (हालांकि समय-समय पर राशि बदली जाती रही है),
- प्रशस्ति पत्र,
- वाग्देवी (सरस्वती) की कांस्य प्रतिमा दी जाती है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- शुरुआत में यह पुरस्कार केवल जीवित लेखकों को दिया जाता था, लेकिन 2018 से मरणोपरांत (Posthumous) भी प्रदान किया जा सकता है।
- इसे भारतीय साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है।
- हिंदी, कन्नड़, बंगाली और मलयालम साहित्य में सर्वाधिक पुरस्कार विजेता रहे हैं।
कुछ प्रमुख विजेता
वर्ष | लेखक | भाषा |
---|---|---|
1965 | जी. शंकर कुरुप | मलयालम |
1976 | महादेवी वर्मा | हिंदी |
1982 | अमृतलाल नागर | हिंदी |
1991 | एम. टी. वासुदेवन नायर | मलयालम |
1997 | अली सरदार जाफरी | उर्दू |
2000 | गिरिश कर्नाड | कन्नड़ |
2013 | श्रीलाल शुक्ल व रवींद्रनाथ ठाकुर | हिंदी, बंगाली |
2019 | अक्किथम अच्युतन नंबूदिरी | मलयालम |
2022 | दामोदर मौजो | कोंकणी |
2023 | शरद पगारे | हिंदी |
2024 | विनोद कुमार शुक्ल | हिंदी |
कुल पुरस्कार विजेताओं की संख्या
अब तक 59 लेखकों को यह पुरस्कार मिल चुका है। हिंदी साहित्य से कुल 12 लेखक इस पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार का महत्व
इसके माध्यम से विभिन्न भाषाओं और साहित्यिक परंपराओं के लेखकों को मान्यता और प्रेरणा मिलती है।
यह पुरस्कार भारतीय भाषाओं में साहित्यिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए दिया जाता है।
यह न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय साहित्य की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है।
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