सिन्धु सभ्यता की खोज 1921 में रायबहादूर दयाराम साहनी ने की। इस सभ्यता को आद्य एंतिहासिक अथवा कांस्य युग मे रखा जा सकता है इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्यसागरीय थे।
भारत में प्रागैतिहासिक स्थलों को खोजने का कार्य भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग करता है भारतीय पुरातत्व विभाग के जन्मदाता अलेक्जेंडर कनिंघन को माना जाता है। भारतीय पुरातत्व विभाग की नींव वॉयसराय लार्ड कर्जन के काल मे पड़ी। जब भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिर्देशक जॉन मार्शल थे, तब दयाराम साहनी ने 1921 में हड़प्पा की तथा राखलदास बनर्जी ने 1922 ई को में मोहनजोदड़ो की खोज की।
नमकरण
हड़प्पा सभ्यता – इस सभ्यता को सबसे उपयुक्त नाम हड़प्पा सभ्याता है, क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा स्थल ही खोज गया था।
सिन्धु सभ्यता -हड़प्पा सभ्यता के प्रारम्भिक स्थल सिन्धु नदी के आस-पास अधिक केन्द्रित थे अतः इसे सिन्धु सभ्यता कहा गया परन्तु बाद में अन्य क्षेत्रों से भी स्थलों की खोज होने से अब इसका सर्वाधिक उपयुक्त नाम यह नहीं रह गया।
सिन्धु-सरस्वती सभ्यता – सन् 1947 ई के भारत के विभाजन के समय तक इस सभ्यता से जुडी केवल 40 बस्तियों का ही पता चल पाया था, परन्तु अब लगभग 1400 बस्तियों का पता चल चुका है जिसमे केवल 40 बस्तियो ही सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र मे पाई गई हैं, जबकि 1100 बस्तियाँ सिन्धु तथा गंगा के बीच के मैदान में स्थित है जहाँ कभी सरस्वती नदी बहती थी। अब यह सरस्वती नदी लुप्त हो गयी हैं।
काँस्य युगीन सभ्यता – सिन्धु वासियों ने पहली बार ताँबे में टिन मिलाकर काँसा तैयार किया। अतः इसे कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाता है।
प्रथम नगरीय क्रांन्ति – सिन्धु सभ्यता को प्रथम नगरीय क्रांन्ति भी कहा जाता है, क्योंकि भारती में पहली बार नगरों का उदय इसी सभ्यता के समय हुआ।
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख्य नगर
- मोहनजोदड़ो
- हड़प्पा
- कालीबंगा
- लोथल
- चन्हुदरु
- धोलावीरा
- बनावली
मोहन जोदड़ो
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मोहन जोदड़ो को सिन्धी भाषा में मुर्दों का टीला भी कहा जाता है। इसे नियोजित रुप से बसा हुआ विश्व का सबसे प्राचीन शहर माना जाता है। सिंघु घाटी सभ्यता में मोहनजोदड़ो सबसे परिपक्व शहर था। यह शहर सिंधु नदी के किनारे सक्खर जिले में बसा हुआ था। इसकी खोज साल 1922 में राखालदास बनर्जी (R D Banerjee) ने की थी। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है “मुअन जो दड़ो” है।
साल 1922 ई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर मोहन जोदड़ो पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ था। लेकिन पिछले करीब 100 सालों में इस जगह के केवल एक.तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है। हालांकि अब यहां खुदाई बंद कर दी गई है। जानकारों के मुताबिक मोहन जोदड़ों शहर करीब 125 हेक्टेयर में बसा हुआ था। इस शहर में उस समय जल कुड था। खुदाई में यहां बड़ी मात्रा में इमारतें धातुओं की मूर्तियांए और मुहरें मिले थे।
मोहन जोदड़ो की स्थिति. यह शहर वर्तामन में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित है।
हड़प्पा
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हड़प्पा शहरए पाकिस्तान के पूर्वोत्तर में स्थित पंजाब प्रांत में स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। यह शहर रावी नदी के किनारेए साहिवाल शहर से करीब 20 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। कांस्य युगीन सिंधु घाटी सभ्यता से संबंध रखने के कारण इसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है। यह सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे पहले खोजी गई सभ्यता है। यहां खुदाई के समय सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक अवशेष प्राप्त हुए थे।
साल 1921 में जब भारतीय पुरातात्विक विभाग के निर्देशकए जॉन मार्शल थे तब उनके निर्देश पर ष्दयाराम साहनी द्वारा सबसे पहले इस जगह की खुदाई का काम शुरू किया गया था। इस प्राचीन साईट पर साहनी के अलावा माधव स्वरुप व मार्तीमर वीहलर द्वारा भी खुदाई करवाई गई थी। लेकिन हड़प्पा का अधिकातर हिस्सा रेलवे निर्माण कार्य के कारण नष्ट हो चुका था। खुदाई में इस जगह से सिंधु सभ्यता से जुड़ी तांबे की इक्का गाड़ीए उर्वरता की देवीए कांस्य दर्पणए मछुआरे का चित्रए गरुड़ की मूर्तिए शिव की मूर्ति आदि साक्ष्य प्राप्त हुए थे।
कालीबंगा
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यह स्थल राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है। जानकारों के मुताबिक कालीबंगा एक छोटा नगर था। इसे 4000 ईसा पूर्व से भी अधिक प्राचीन नगर माना जाता है। इन नगर की खोज साल 1952 में अमलानन्द घोष द्वारा की गई थी। इसके बाद बीके थापर व बीबी लाल द्वारा साल 1961 से 1969 के बीच यहां खुदाई का कार्य किया गया था। यहां खुदाई में एक दुर्ग के साथ. साथ दुनिया का सबसे पहलो जोता हुआ खेत मिला था। ऐसा माना जाता है कि 2900 ईसा पूर्व तक कालीबंगा एक विकसित नगर हुआ करता था। कालीबंगा में भी खुदाई में सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं।
लोथल
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लोथल गुजराती में स्थित प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहरों में से एक है। यह एक बहुत महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर है। यह ईसा से करीब 2400 साल पूर्व का एक प्राचीन नगर माना जाता है। लोथल की खोज साल 1954 में हुई थी। इसकी खुदाई 13 फरवरी 1955 से लेकर 19 मई 1956 तक हुई थी। यह शहर वर्तमान में अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका के गांव सरागवाला पास है। लोथलए अहमदाबाद.भावनगर रेलवे लाइन के स्टेशन लोथल भुरखी से दक्षिण पूर्व में करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर है।
विश्व की सबसे प्राचीनतम गोदीए लोथल गोदीए हड़प्पा के शहरों और सौराष्ट्र प्रायद्वीप के बीच बहने वाली साबरमती नदी की धारा से जुड़ी थी। यह प्राचीन समय में एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग था। पूराने समय में इसके आसपास अरब सागर का एक हिस्सा और कच्छ का मरुस्थल क्षैत्र हुआ करता था। इस संपन्न व्यापार केंद्र से पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक मोतीए जवाहरात और कीमती गहने भेजे जाते थे। उस दौर में यहां मनके बनाने की तकनीक और उपकरण विकसित हो चुके थे। बताया जाता हैं कि यहां की धातु 4000 साल से भी अधिक से समय की कसौटी पर खरी उतरी थी।
चहुँदड़ो
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यह भी सिंधु घाटी सभ्यता से सबंधित एक पुरातत्व स्थल है। चहुँदड़ोए पाकिस्तान के सिंध इलाके के मोहेंजोदड़ो से करीब 130 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है। चहुँदड़ो शहर को 4000 से 1700 ईसा पूर्म में बसा हुआ नगर माना जाता है। साल 1930 में एन गोपाल मजुमदार द्वारा चहुँदड़ो की पहली बार खुदाई करवाई गई थी। हालांकि इसके बाद भी साल 1935.36 में अमेरीकी स्कूल ऑफ इंडिक एंड इरानियन तथा म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट्सए बोस्टन के दलों अर्नेस्ट जॉन हेनरी मैके के नेतृत्व में भी यहां खुदाई का काम किया था। प्राचीनकाल में चहुँदड़ो को इंद्रगोप मनकों के निर्माण स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां पर खुदाई मेंए ईट पर बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजे के निशान मिले थे।
धोलावीरा
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भारत के गुजरात में कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में स्थित धोलावीरा एक पुरातत्विक स्थल की खोज हुई थी। इस जगह का नाम यहां पर स्थित गांव पर था। इस स्थल की खोज साल 1960 में धोलावीरा निवासी शंभूदान गढ़वी ने की थी। इसके कई सालों बाद गढ़व के प्रयासों से सरकार का ध्यान इस जगह की ओर गया। धोलावीराए भौगोलिक रूप से कच्छ के रण में मरुभूमि वन्य अभयारण्य के अंदर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि धोलावीरा नगर कीब 120 एकड़ में बसा हुआ शहर था।
जानकारों के मुताबिक यहां करीब 2650 ईसा पूर्व में लोगों का बसना शुरू हुआ था जोकि 2100 ईं पू के बाद कम हो गया था। प्राचीन काल में एक समय ऐसा भी आया जब यह नगर खाली रहा। हालांकि 1450 ई पू में एक बार फिर यहां लोगों का बसना शुरू हुआ। कुछ खोजों से ये भी पता चलता है कि यहां 3500 ई पू से लोग बसने लगे थे।
5 हजार साल पहलेए धोलावीरा को दुनिया के सबसे व्यस्त महानगरों में गिना जाता था। हड़प्पा कालीन धोलावीरा शहर को यूनेस्को की साल 2021 में चीन में संपन्न यूनेस्को की ऑनलाइन बैठक मेंए विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया था। यह सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल माना जाता है।
यह धोलावीराए भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है।
बनावली
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हरियाणा में स्थित बनावली सिन्धु घाटी सभ्यता से सबंधित एक पुरातत्व स्थल है। यह रंगोई नदी के तट पर स्थित था। बताया जाता है कि कालीबंगा सरस्वती की निचली घाटी पर स्थित थाए वहीं बनावली उपरी घाटी पर बसा था। यह स्थलए प्राचीन शहर कालीबंगा से 120 किमी तथा फतेहाबाद से 16 किमी दूरी स्थित है। यहां खुदाई का काम आरएस बिह्स्त द्वारा किया गया था। यहां खुदाई में तीन संस्कृति अनुक्रम प्राप्त हुए हैए.
इस काल के मिट्टी के बर्तनों मेंए पूर्व.हड़प्पन चित्रित रूपांकनों सरल विरल बन जाती थी। इस दौरान सफेद रंगों का उपयोग कम लोकप्रिय हो गया था। यहां खुदाई में डिश.ऑन.स्टैंडए बेसिनए गर्तए जार और कटोरे आदि प्राप्त हुए थे। इसले अलावा यहां से कम कीमती पत्थरए शेल और तांबे की चूड़ियां भी मिली थी।
हड़प्पाए मोहनजोदड़ोए बनावली और धोलावीरा चार प्रमुख हड़प्पा स्थल माने जाते हैं। साल 1999 तक यहां 1ए056 से अधिक शहर और बस्तियां ढूंढी जा चुकी थी। इसके लिए सिंधु और घग्घर.हकरा नदियों और उनकी सहायक नदियों के क्षेत्र में 96 स्थलों की खुदाई की गई थी। इस दौरान हड़प्पाए मोहनजोदड़ोए धोलावीरा और राखीगढ़ी सबसे महत्वपूर्ण शहरी केंद्र थे।
सिन्धु सभ्यता के कुछ महत्व पूर्ण तत्व –
सिन्धु घाटी का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध स्थल मोहनजोदड़ो है। मोहनजोदड़ोए सिंधु नदी के बगल में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। यह रोहरी से बहुत अधित दूरी पर नहीं है जहां बहुत प्रारंभिक मानव चकमक पत्थर खनन खदानें हैं। ऐसा माना जाता है कि सिंधु नदी कभी मोहनजोदड़ो के पश्चिम में प्रवाहित होती थीए लेकिन अब यह इसके पूर्व में स्थित है।
सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे छोटा स्थल :-
सिंधु सभ्यता को दो बड़े शहरोंए हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के लिए जाना जाता है। इसके अलावा यहां 100 से अधिक अक्सर अपेक्षाकृत छोटे आकार के शहर और गांवों के होने का अनुमान लगाया जाता है।
सिन्धु काल में विदेशी व्यापार
आयतित वस्तुएं | प्रदेश |
ताँबा | खेतड़ी, बलूचिस्तान, ओमान |
चाँदी | अफगानिस्तान, ईरान |
सोना | कर्नाटक, अफगानिस्तान, ईरान |
टिन | अफगानिस्तान, ईरान |
गोमेद | सौराष्ट्र |
लाजवर्त | मेसोपोटामिया |
सीसा | ईरान |
सैंधव सभ्यता के प्रमुख स्थल: नदी, उत्खननकर्ता एवं वर्तमान स्थिति:-
प्रमुख स्थल | नदी | स्थिति | उत्खननकर्ता |
हड़प्पा | रावी | पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का साहीवाल जिला | दयाराम साहनी, माधोस्वरूप वत्स (1926) , व्हीलर (1946) |
मोहनजोदड़ो | सिन्धु | पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला | राखालदास बनर्जी (1922) मैके (1927) व्हीलर (1930) |
चन्हूदड़ों | सिंन्धु | सिंध प्रांत पाकिस्तान नबाब शाह जिला | मैके (19250 एनजी मजुमदार (1931) |
कालीबंगन | घग्घर | राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला | अमलानंद घोष (1951) बी वी लाल एवं बी के थापर (1961) |
कोटदीजी | सिन्धु | सिंध प्रांत का खैरपुर स्थान | फजल अहमद (1953) |
रंगपुर | मादर | गुजरात का काठियावाड़ जिला | रंगनाथ राव (1953-54) |
रोपड | सतलज | पंजाब का रोपड़ जिला | यज्ञदत शर्मा (1953-56) |
लोथल | भोगवा | गुजरात का अहमदाबाद जिला | रंगनाथ राव (1954) |
आलमगीरपुर | हिन्डन | उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला | यज्ञदत शर्मा (1958) |
सुतकांगेडोर | दाश्क | पाकिस्तान के मकरान में समुद्र तट के किनारे | ऑरेल स्टाइन (1927) |
बनमाली | रंगोई | हरियाण का हिसार जिला | रवीन्द्र सिंह विष्ट (1974) |
धौलावीरा | लुनी | गुजरात के कच्छ जिला | जे. पी. जोशी (1967-1968) रवीन्द्र सिंह विष्ट (1990-91) |
सोत्काह | शादीकौर | द. ब्लूचिस्तान | जार्ज डेल्स (1962) |
कुछ महत्वपूर्ण तथ्यः-
- लेखन कला की उचित प्रणली विकसित करने वाली पहली सभ्यता सुमेरिया की सभ्यता है।
- सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
- रेडियोकार्बन C14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है। इसका विस्तार त्रिभूजाकार है।
- स्त्री मृण्मूर्तियाँ (मिट्ठी की मूर्तियाँ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसŸाात्मक था।
स्वास्तिक चिह संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है। - पशुओं में कुबड़ वाला साँड़ इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था।
- पर्दा-प्रथा एवं वैश्यावृति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी।
- सिंन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे।
- मनोरंजन के लिए सैध्ववासी मछली पकडना, शिकार करना, पशु पक्षियों को आपस मंे लडाना , चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे।