जन्म – 30 अगस्त, 1569 ई. में
मूल नाम – सलीम
पूरा नाम – नुरूदीन मोहमद जहाँगीर
पिता – अकबर
माता – मरयिम उज्जमानी (हरखाबाई उर्फ जोधाबाई)
राज्यभिषेक – 24 अक्टूबर, 1605 ई. में
जहाँगीर का प्रारंभिक जीवन – भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। जहाँगीर का असली नाम ‘नूरुद्दीन सलीम’ था, जो मुग़ल साम्राज्य के चौथे बादशाह अकबर के बेटे थे। उनका जन्म 31 अगस्त 1569 को हुआ था।
नूरुद्दीन सलीम की बचपन से ही राजनीतिक संघर्ष और अद्वितीय व्यक्तित्व के कारण वे मुग़ल साम्राज्य के भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
जहाँगीर का अधिकांश समय उनके पिता अकबर के राज काल में बीता, जिसमें उन्हें राजकुमार के रूप में विभिन्न कार्यों में शामिल किया गया। उन्होंने कई सामरिक और राजनीतिक कार्यों में भाग लिया, जिसने उनकी नेतृत्व की क्षमताओं को प्रकट किया।
जहाँगीर ने जब बादशाही संभाली, तो उनके पास विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे उनके नेतृत्व में मुग़ल साम्राज्य के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संभालना और राज्य की नियंत्रण को बनाए रखना। उनका शासनकाल राजनीतिक समृद्धि, कला और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्टता के रूप में भी याद किया जाता है। उनका राज्य उत्तम और समृद्ध था, जिसने मुग़ल साम्राज्य को एक उच्च स्तर पर ले जाने में मदद की।
जहाँगीर के शासनकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण और चरमों के फैसले किए, जिन्हें उनके “अध्यादेश” कहा जाता है। ये अध्यादेश उनके शासनकाल में हुए विभिन्न प्रमुख घटनाओं और नीतियों को संघटित करते हैं। निम्नलिखित हैं जहाँगीर के 12 अध्यादेश:
- धरमविवाद का समाधान: जहाँगीर ने अपने शासनकाल की शुरुआत में धर्मविवादों का समाधान किया। उन्होंने हिंदूओं और मुस्लिमों के बीच सामंजस्य को बढ़ावा दिया।
- राजनीतिक स्थिरता: जहाँगीर ने अपने शासनकाल के दौरान राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने के लिए कई नीतियां अपनाई। उन्होंने विभिन्न प्रांतों के सुलह करवाए और राज्य की सुरक्षा में सुधार किया।
- कला और साहित्य का प्रोत्साहन: जहाँगीर ने कला और साहित्य को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कलाकृतियों को आदर्शित किया और कई कला संगठनों की स्थापना की।
- राजनीतिक और आर्थिक सुधार: जहाँगीर ने राजनीतिक और आर्थिक सुधार के लिए कई नीतियां अपनाई। उन्होंने कर व्यवस्था में सुधार किया और राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया।
- विदेशी राजनीति: जहाँगीर ने विदेशी राजनीति में भी अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने विभिन्न विदेशी राज्यों के साथ समझौते किए और भारत की स्थिति को बल से बढ़ाया।
- सामाजिक सुधार: जहाँगीर ने सामाजिक सुधारों को भी प्राथमिकता दी। उन्होंने जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव को कम किया और समाज में सामंजस्य को बढ़ावा दिया।
- प्रशासनिक सुधार: जहाँगीर ने प्रशासनिक क्षमता को मजबूत करने के लिए कई सुधार किए। उन्होंने प्रशासन की व्यवस्था में सुधार किया और न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत किया।
- विश्वास का प्रमोट: जहाँगीर ने विश्वास को प्रमोट किया और लोगों के बीच विश्वास को मजबूत किया।
- कृषि और उद्योग: जहाँगीर ने कृषि और उद्योग को बढ़ावा दिया। उन्होंने कृषि के क्षेत्र में नई तकनीकियों को लागू किया और उद्योग को विकसित किया।
- धर्मनिरपेक्षता: जहाँगीर ने धर्मनिरपेक्षता की भावना को बढ़ावा दिया। उन्होंने सभी धर्मों के प्रति समान भाव और सम्मान की अपेक्षा की।
- विदेशी यात्राएँ: जहाँगीर ने विदेशी यात्राओं को प्रमोट किया और अन्य देशों के बीच संबंधों को मजबूत किया।
- पर्यावरण संरक्षण: जहाँगीर ने पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए कई उपाय किए।
जहाँगीर के विरूद्ध षड्यंत्र
जहाँगीर के शासनकाल में कई विरूद्ध षड्यंत्र हुए थे, जिनमें उनके राज्य की स्थिति को खतरे में डालने की कोशिश की गई थी। ये षड्यंत्र राजनीतिक, सामरिक, और व्यक्तिगत मोटिवेशन के आधार पर किए गए थे।
- खुसरो का षड्यंत्र: जहाँगीर के अकबर के पुत्र खुसरो के विरूद्ध एक षड्यंत्र था। खुसरो ने अपने पिता अकबर के खिलाफ बग़ावत की थी और उसे शासन का दावा किया था। जहाँगीर ने इसे नाकाम बनाया और खुसरो को गिरफ्तार कर लिया।
- सलीम का षड्यंत्र: जहाँगीर के बेटे सलीम (जो बाद में शाहजहाँ के नाम से मशहूर हुए) ने भी अपने पिता के खिलाफ कई षड्यंत्र रचे थे। वे अपने पिता को हराकर साम्राज्य को अपने नियंत्रण में करने की कोशिश करते थे, लेकिन जहाँगीर ने उन्हें अपने खिलाफ साजिश करते हुए गिरफ्तार कर लिया था।
- महाबत खान का षड्यंत्र: महाबत खान, जहाँगीर के एक मंत्री और सलीम के साथी, ने भी उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा था। वह जहाँगीर के विरूद्ध सम्प्रदायिक और राजनीतिक द्वेष को बढ़ावा देने का आरोप लगाता था। महाबत खान को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें सजा दी गई।
इन षड्यंत्रों के बावजूद, जहाँगीर ने अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने में सफलता प्राप्त की और अपने शासनकाल को स्थिर रखा।
जहाँगीर की धार्मिक नीति
जहाँगीर का धार्मिक दृष्टिकोण विविधता को स्वीकार करने वाला था। उन्होंने अपने शासनकाल में धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया और अपने राज्य में हिंदू, मुस्लिम, और अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए आज़ादी और समानता की भावना को बढ़ाया। वे धर्मनिरपेक्षता की भावना को प्रोत्साहित करते थे और अपने राज्य में धर्मिक सहिष्णुता को स्थायी रूप से स्थापित करने का प्रयास करते थे। इसके अलावा, वे धर्म स्वतंत्रता का समर्थक थे और धर्मांतरण पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाते थे। यहां तक कि उन्होंने अपने कई मंत्रियों को विभिन्न धर्मों से चुना था, जिससे वे अपनी धर्मनिरपेक्षता को प्रकट करते थे।
नूरजहाँ
नूरजहाँ, मुग़ल साम्राज्य की एक प्रमुख महिला शासक थीं। वह मुग़ल साम्राज्य के पाँचवें सम्राट जहाँगीर की पत्नी और शाहजहाँ की मां थीं। नूरजहाँ का शासनकाल अपनी समृद्धि, साहस और कला के लिए प्रसिद्ध रहा।
नूरजहाँ ने अपने शासनकाल में अद्भुत और सुंदर आर्किटेक्चरल निर्माण कार्य किया और कई उत्तम कला और संस्कृति के प्रोत्साहन की ओर ध्यान दिया। उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा, साहित्य, कला और विज्ञान को प्रोत्साहित किया।
नूरजहाँ की प्रसिद्धता का एक बड़ा कारण उनकी साहसिकता और साम्राज्यिक क्षमता थी। वह शासन के मामले में अपने पति जहाँगीर की महत्त्वाकांक्षा को समझती थीं, और अपने प्रभाव के माध्यम से उनकी सहायता करती थीं। उनका योगदान मुग़ल साम्राज्य के इतिहास में महत्वपूर्ण है और उन्हें भारतीय इतिहास की महान महिलाओं में गिना जाता है
खुर्रम का विद्रोह
खुर्रम, जो बाद में शाहजहाँ नाम से मशहूर हुआ, उस समय जहाँगीर का पुत्र और उत्तराधिकारी था। उसका विद्रोह उसके पिता जहाँगीर के खिलाफ हुआ था।
खुर्रम का विद्रोह 1617 में हुआ था। उसने अपने पिता जहाँगीर के खिलाफ उसकी दोस्त मीर्ज़ा खुज़री खान के साथ गढ़बढ़ की थी। इसका मुख्य कारण था उसके द्वारा अपने पिता के द्वारा अपनी प्रेमिका एंम जोधा बाई के खिलाफ बाधाएँ लगाने का आरोप था।
खुर्रम ने अपने विद्रोह के दौरान दिल्ली को अपने अधीन करने का प्रयास किया था, लेकिन उसके विद्रोह को दबाने में उसके पिता जहाँगीर और उसके सैनिकों ने कामयाबी प्राप्त की थी। खुर्रम को बाद में शाहजहाँ नाम दिया गया और उसने अपने पिता के बाद मुग़ल साम्राज्य का शासक बनकर एक शानदार साम्राज्यिक कार्यकाल दिखाया।
जहाँगीर का विजय अभियान
जहाँगीर का विजय अभियान उसके शासनकाल के दौरान, उसने अपने साम्राज्य के सीमाओं को विस्तारित करने के लिए कई आक्रमणों का आयोजन किया। वह अपने समय में भारतीय सब्जेक्ट्स को अपने साम्राज्य में शामिल करने के लिए कई युद्धों का आयोजन किया और कई स्थानों को अपने अधीन किया।
जहाँगीर का सबसे महत्वपूर्ण विजय अभियान मालवा का अभियान (1615-1616) था, जिसमें उन्होंने मालवा क्षेत्र को अपने अधीन किया। उन्होंने अपने मंत्रियों में से एक राजपूत नेता मान सिंह को साथ लिया था जिनकी मदद से उन्होंने मालवा की प्राचीन राजधानी मंदुआ को जीता।
जहाँगीर के अन्य विजय अभियानों में कबूल (1595), बालोचिस्तान (1595), कंबयत (1605), काश्मीर (1614), एक और मालवा अभियान (1617) शामिल हैं। उन्होंने अपने विजय अभियानों के माध्यम से मुग़ल साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाया और अपनी सत्ता को मजबूत किया।
जहाँगीर का दक्षिण अभियान
जहाँगीर का दक्षिणी अभियान (विजय अभियान) 1616-1618 के बीच आयोजित किया गया था। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य था मुग़ल साम्राज्य के अधिकांश भागों को अपने अधीन में करना और दक्षिणी भारत के बहुत से प्रांतों को नियंत्रित करना।
जहाँगीर के दक्षिणी अभियान में उन्होंने कन्नौज, मालवा, अंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और बिजापुर के कुछ हिस्सों को अपने अधीन में किया। उन्होंने अपने सेनापति मीर्ज़ा रजा जयसिंह और दिग्गज सेनानी अब्दुल रहीम खान की मदद से अपने योजना को कारगर बनाया।
जहाँगीर के दक्षिणी अभियान के बाद, मुग़ल साम्राज्य की सीमाएँ विस्तारित हुईं और उनका साम्राज्य दक्षिण भारतीय क्षेत्र में भी फैल गया। इस अभियान ने मुग़ल साम्राज्य को दक्षिणी भारत में और अधिक स्थायी रूप से स्थापित किया।
जहाँगीर व युरोपीयवासी
जहाँगीर के समय में, युरोपीय देशों के साथ संबंधों में वृद्धि हुई थी, जो उसके पिता अकबर के शासक्यकाल से शुरू हुई थी। जहाँगीर का शासनकाल (1605-1627) भारतीय इतिहास में युरोपीय संपर्क के दौर में आता है, जिसने भारतीय समाज और राजनीति को नई प्रेरणा दी।
जहाँगीर के समय में पोर्टुगलियों, दक्षिणी भारतीय तटों पर व्यापारी और नौसेना केंद्रित बसे हुए थे। उन्होंने पोर्टुगीज नौकाओं की निगरानी करने के लिए कई कदम उठाए।
जहाँगीर के दौरान, ब्रिटिश प्रायद्वीपीय दिशा में अपनी ध्यानवानी की। उन्होंने वसाइयों को मुग़ल साम्राज्य में अधिक आत्मसात् करने के लिए अनुमति दी। उनकी राजनीति ने ब्रिटिश के भारत में प्रवेश की दिशा में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक और राजनीतिक प्रभाव की नींव रखी गई।
जहाँगीर के शासनकाल में युरोपीय व्यापारी और आगंतुकों के साथ व्यापार और व्यक्तिगत संबंधों में वृद्धि हुई। यह उस समय की व्यापारिक और सांस्कृतिक बदलाव का प्रतीक था, जब भारत और युरोप के बीच नए संबंध बन रहे थे।
जहाँगीर की मृत्यु
जहाँगीर की मृत्यु 28 अक्टूबर 1627 को हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनका पुत्र शाहजहाँ उनके उत्तराधिकारी बने। जहाँगीर को लंबे समय तक बीमारी का सामना करना पड़ा था, और उनकी मृत्यु के समय उनकी सेहत काफी कमजोर थी। उनका अंतिम संस्कार आगरा में हुआ था।