कुषाण वंश


कुषाण वंश के संस्थापक – कुजुल कडफिसेस
राजधानी – पुरुषपुर या पेशावर

कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 78 ई. भारत के शक संवतृ का सूचक है।

  • पहलव के बाद कुषाण वंश आए, जो यूची एव तोखरी भी कहलाते हैं।
  • युची नामक एक कबीला पाँच कुलों मे बँट गया था, उन्हीं मे कुल के थे कुषाण ।
  • इस वंश के सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था। इनकी कुषाणें की द्वितीय राजधानी मथुरा थी।
  • कनिष्क ने 78 ई गदी पर बैठने के समय में सक संवत् चलाय जो शक-संवतृ कहलाता है जिसे भारत सरकार द्वारा प्रयोग मे लाय जाता है।
  • बौद्ध धर्म की चौथी बौद्ध संगीति कनिष्क के शासनकाल मे कुडलवन कश्मीर मे ंप्रसिद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था।
  • कला शैलियाँ – कनिष्क के समय मे भारत में दो नवीन कला शैलियों का जन्म हुआ, जिसे गान्धार एवं मथुरा कला शैली कहा जाता है।
  • गान्धार कला शैली – इसे इण्डों ग्रीक या ग्रीक बुद्धिष्ट शैली भी कहा जाता है। इसका केंन्द्र बिन्दु गांधार था, इसे गांधार कला शैली भी कला जाता है । इसमें बुद्ध एवं बोधिसत्वों की मूतियों काले स्लेटी पाषाण से बनाई गई हैं यह युनानी देवता अपोलों की नकल प्रतीत होती है इसमें भोतिकता का पुट स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
  • मथुरा कला शैली – इस कला शैली का जन्म कनिष्क केसमय में मथुरा में हुआ इस शैली में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग हुआ है। इसमें बौद्ध हिन्दू एवं जैन धमों से संम्बन्धित मूर्तियों का निर्माण किया गया है बुद्ध की प्रथम मूर्ति के निर्माण का श्रेय पहली शती ई इसी कला शैली को दिया जाता है। कनिष्क ने अपनी राजधानी पुरूषपुर में 400 फीट ऊँचा 13 मंजिलों का एक टावर बनवाया था। इसके उपर एक लौह छत्र स्थापित किया गया। उसी के पास एक विशाल संघाराम निर्मित किया गया था यह संघाराम कनिष्क के चैत्य के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण यवन वास्तुकार अगिलस द्वारा किया गया।।
  • नगर निर्माण – कनिष्क ने कश्मीर कनिष्कपुर तथा तक्षशिला के सिरकप से एक नए नगर की स्थापना की।
  • सिल्क मार्ग पर अधिकार – कनिष्क ने चीन से रोम को जाने वाल सिल्क मार्ग की तीनों मुख्य शाखाओं पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया ।
    • 1. कैस्पियन सागर से होकर जाने वाला मार्ग।
    • 2. मर्व से फरात नदी होते हुए रूम सागर पर बने बन्दगाह तक जाने वाला मार्ग।
    • 3. भारत से लाल सागर तक जाने वाला मार्ग।
  • सिक्के – कुषाणें ने ही सर्वाधिक शुद्ध सिक्के (124 ग्रेन के) जारी किय कुषाणें को सर्वाधिक ताम्र सिक्के चलाने का श्रंेय भी प्राप्त है।
  • विद्वानो को आश्रय – कनिष्क की राजसभा अनेक योग्य विद्वानों से सुशोभित थी इनमें पार्श्व, वसुमित्र और अश्वघोष जैसे बौद्ध दार्शनिक थे। नागार्जुन जैसे प्रकाण्ड पंडित और चरख जैसे चिकित्सक उसकी राजसभा के रत्न थे। कनिष्क का पुरोहित संघरक्ष था।

कनिष्क के उत्तराधिकारी –

  • वासिष्क (102-106 ई ) यह कनिष्क का पुत्र था।
  • हुविष्क (106-140 ई ) इसने कश्मीर में हुष्कपुर नामक नगर की स्थापना करवाई यह शिव और विष्णु का उपासक था। इसके चतुर्भुजी विष्णु के सिक्के प्राप्त होते है।
  • वासुदेव – यह भी विष्णु एवं शिव का उपासक था इसके समय मे ंउत्तर – पश्चिम का बहुत बड़ा भाग कुषाणें के हाथ से निकल गया उसके उत्तराधिकारी कमजोर थे। ईरान में ंससानियन वंश के तथा पूर्व मे नागभरशिव वंश के उदय ने कुषाणों के पतन में योगदान किया।
  • कुषाणें ने केवल स्वर्ण एवं ताँबे के सिक्के जारी किय उन्होनंे चाँदी के सिक्के नहीं चलाये।

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